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कल से होलाष्टक प्रारंभ, जानिए इन आठ दिनों में क्या करें क्या न करें
शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन यानि फाल्गुन पूर्णिमा तक के समय को ही होलाष्टक कहा गया है। इस वर्ष होलाष्टक 10 मार्च, गुरुवार से आरंभ होकर 17 मार्च, गुरुवार तक रहेंगे। होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पूर्व होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखी लकड़ी, उपले व होलिका दहन के लिए दो डंडे स्थापित किए जाते है। एक डंडे को प्रह्लाद एवं दूसरे डंडे को उनकी बुआ होलिका माना जाता है। इसी दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन माना जाता है। हालांकि इन 8 दिनों तक कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते लेकिन देवी देवता की आराधना के लिए यह बहुत ही शुभ दिन माने जाते हैं।
होलाष्टक में क्या न करें-
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार अष्टमी से पूर्णिमा तक नवग्रह भी उग्र रूप लिए रहते है,यही वजह है कि इस अवधि में किए जाने वाले शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका बनी रहती है। इसी मान्यता के चलते इन दिनों कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण एवं विद्यारंभ आदि सभी मांगलिक कार्य या कोई नवीन कार्य प्रारम्भ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित माना गया है।
होलाष्टकों को व्रत,पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है। इन दिनों में किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
उचित हो खानपान-
इस दौरान मौसम में तेजी बदलाव होता है,इसलिए अनुशासित दिनचर्या को अपनाने की सलाह दी जाती है। होलाष्टक में स्वच्छता और खान-पान का उचित ध्यान रखना चाहिए।
शिव की उपासना-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन दिनों में भगवान शिव की उपासना करने से मनुष्य कष्टों से बचा रहता है। होलाष्टक में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से हर तरह के रोग से छुटकारा मिलता है और सेहत अच्छी रहती है।
भगवान गणेश और हनुमानजी की स्तुति-
होलाष्टक के दौरान गणेश वंदना और आरती बहुत ही फलदायी होती है। इसके अलावा हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से भी कष्ट दूर होते हैं।
भगवान विष्णु की पूजा-
होलाष्टक के दौरान भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए,ऐसा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होकर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।