धर्म-अध्यात्म

Hariyali Teej: बांके बिहारी के होंगे दुर्लभ दर्शन, जानें किस तरह शुरू हुई यह परंपरा

Kunti Dhruw
11 Aug 2021 5:07 PM GMT
Hariyali Teej: बांके बिहारी के होंगे दुर्लभ दर्शन, जानें किस तरह शुरू हुई यह परंपरा
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हरियाली तीज का त्योहार आज पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है।

हरियाली तीज का त्योहार आज पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर साल यह पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। हरियाली तीज के साथ ही ब्रज के मंदिरों में हिंडोला उत्सव शुरू हो चुका है। विश्वविख्यात ठाकुर बांके बिहारी भी आज स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। साल में केवल एक दिन होने वाले हिंडोला दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना को देखते हुए पुलिस-प्रशासन ने भी सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं। हिंडोला उत्सव में ठाकुरजी स्वयं राधारानी को झूला झूलने के लिए निमंत्रण देते हैं और फिर राधा रानी को स्वयं झूलाते हैं।

ब्रज में चली आ रही है परंपरा
माना जाता है कि सावन का महीना भगवान श्रीकृष्ण को सबसे प्रिय है, जिसमें वे सखी-सहेलियों के साथ झूला झूलते हैं। आज भी वह परंपरा ब्रज के मंदिरों में चली आ रही है। ब्रज के लगभग सभी मंदिरों में ठाकुरजी के श्री विग्रह को झूला झुलाया जाता है। ब्रज के मंदिरों में ठाकुरजी को झुलाने के इस उत्सव को हिंडोला उत्सव कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास भी बिहारीजी को पांच सौ साल पहले फूल-पत्ती व कपड़े आदि से निर्मित झूले में झुलाते थे लेकिन बदले परिवेश में अब भक्त उन्हें स्वर्ण-रजत निर्मित भव्य हिंडोले में झूला झुलाते हैं।
ब्रज में शुरू होता है हिंडोला उत्सव
हिंडोला एक तरह से ठाकुरजी का झूला होता है, जिसे कई प्रकार से सजाया जाता है। हरियाली तीज के दिन हिंडोला ब्रज के सभी मंदिरों में लगाया जाता है। कुछ हिंडोले सोने-चांदी के बने होते हैं, वहीं कुछ फल, फूल, मेवा, चंदन आदि प्रकार से सजाए जाते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा भक्तों को बांके बिहारी का हिंडोला आकर्षित करता है। लगभग सात दशक पुराने इस हिंडोले को साल में केवल एक बार निकाला जाता है। इसे देखकर लगता है कि इसका निर्माण आज ही किया गया है। हिंडोले के आसपास के वातावरण को प्राकृतिक बनाया जाता है और इस हिंडोले में बांके बिहारी झूला झूलते हैं।
पहली बार बांके बिहारी 15 अगस्त को बैठे थे झूले में
करीब 74 साल पहले 15 अगस्त के दिन ही वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर एवं बरसाना के लाड़िलीजी मंदिर में सावन मास में भगवान को झुलाने के लिए सोने-चांदी के झूले (हिंडोले) मंदिर को समर्पित किए गए थे। यह एक संयोग है कि 15 अगस्त के दिन जब सभी देशवासी पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, बांकेबिहारी भी उस दिन सोने व चांदी से बने अनुपम हिण्डोलों में झूल रहे थे। कलकत्ता निवासी और ठाकुरजी के अनन्य भक्त सेठ हर गुलाल बेरीवाला ने स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पूर्व ही ये हिंडोले मंदिर प्रशासन को भेंट किए थे, जिन्हें हरियाली तीज के अवसर पर ठाकुरजी की सेवा में प्रयोग किया जाना था और उस दिन संयोग से 15 अगस्त था।
इस तरह तैयार हुआ था हिंडोला
सेठ हर गुलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाला बताते हैं कि उनके पिता ठाकुरजी के परम भक्त थे और उनके दर्शन किए बिना अन्न का दाना भी स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने बताया था कि उस जमाने में सोने-चांदी के हिंडोले बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी तथा हिंडोलों के निर्माण में 25 लाख रुपए की लागत आई थी। हिंडोले 1942 से बनना शुरू हुआ और 1947 में तैयार हुआ। यह हिंडोले एक प्रकार से आजादी की वर्षगांठ की याद दिलाता है।
5 वर्षों में तैयार हुआ था हिंडोला
हिंडोलों के लिए बनारस के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था जिन्होंने टनकपुर (पिथौरागढ़) के जंगलों से शीशम की लकड़ी मंगवाई। इस लकड़ी को कटवाने के बाद पहले दो साल तक सुखाया गया, फिर हिंडोलों के निर्माण का कार्य शुरु किया गया। इसके लिए बीस उत्कृष्ट कारीगरों ने लगभग पांच वर्ष तक कार्य किया। तब जाकर हिंडोलों का निर्माण संभव हो पाया। हिंडोले के ढांचे के निर्माण के पश्चात उस पर सोने व चांदी के पत्र चढ़ाए गए। सेठ हरगुलाल ने इसी प्रकार का झूला बरसाना के लाड़िली जी मंदिर के लिए भी बनवाया।
स्वर्ण हिंडोले के हैं 130 भाग
झूले के निर्माण के लिए कनकपुर के जंगल से शीशम की लकड़ियां मंगाई गईं। इसमें एक लाख तोले चांदी व दो हजार तोले सोने का इस्तेमाल किया गया। इस तरह का झूला संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं है। स्वर्ण हिंडोले के अलग-अलग कुल 130 भाग हैं। साथ ही हिंडोले के साथ में चार मानव कद की सखियां भी मौजूद हैं। स्वर्ण-रजत झूले का मुख्य आकर्षण फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी-मोर आदि बने हुए हैं।
इस समय बांके बिहारी देंगे दर्शन
बांके बिहारी मंदिर के पट सुबह 7 बजकर 45 मिनट पर खुल चुके हैं और राजभोग आरती 1 बजकर 55 मिनट पर होगी और दोपहर 2 बजे दर्शन बंद हो जाएंगे। सायंकाल के समय शाम 5 बजे फिर से भगवान के पट खुलेंगे, इसके बाद शयन आरती 10 बजकर 55 मिनट पर होगी और रात 11 बजे दर्शन बंद हो जाएंगे। हरियाली तीज पर बांके बिहारी 12 घंटे से अधिक भक्तों को दर्शन देंगे इसलिए उनकी थकान को देखते हुए रात में सुगंधित पुष्पों की सेज बनाई गई है।
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