धर्म-अध्यात्म

इन मंत्रों और कवचों के पाठ से भी बरसती है हनुमत कृपा

Shiddhant Shriwas
12 Oct 2021 6:40 AM GMT
इन मंत्रों और कवचों के पाठ से भी बरसती है हनुमत कृपा
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हनुमान जी की साधना के लिए अनेक प्रकार की विधि, मंत्र, स्तोत्र, कवच आदि हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन परंपरा में हनुमान जी की उपासना एकादश रुद्र के रूप में की जाती है. पुराणों में हनुमान जी को शम्भु, रुद्राक्ष महादेवात्मज, रुद्रावतार, कपीश्वर आदि नामों से संबोधित किया गया है. रामचरितमानस में राम भक्त हनुमान का जो चरित्र मिलता है उससे यह स्पष्ट है कि स्वामी की भक्ति में हमेशा लीन रहने वाले कपीश्वर अपने स्वामी के संकटों में जितने सहायक हुए हैं उतने ही अपने भक्तों पर भी कृपालु होते हैं. बजरंगी की कृपा पाने के लिए अमूमन लोग श्रद्धा के साथ हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, लेकिन हनुमान जी को शीघ्र ही प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार की के मंत्र, स्तोत्र, कवच आदि हैं, जिनका श्रद्धा के साथ पाठ करने पर हनुमान जी अपने भक्तों के कष्ट को दूर करने के लिए दौड़े चले आते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. आइए हनुमत कृपा दिलाने वाले ऐसे ही दिव्य मंत्रों और कवचों के बारे में जानते हैं.

एकमुखी हनुमत्कवचम्
हनुमत उपासन के लिए यह कवच प्रभु श्री रामचन्द्रजी के द्वारा 'ब्रह्माण्ड पुराण' में प्रकट हुआ है. मान्यता है कि यह कवच धारक की समस्त कामनायें पूर्ण करता है.
पंचमुखी हनुमत्कवचम्
हनुमत साधना के लिए यह अत्यधिक तीव्र व शीघ्र प्रभावी कवच है. यह कचव दुर्लभ ग्रन्थ 'सुदर्शन संहिता' में दिया गया है.
सप्तमुखी हनुमत्कवचम्
हनुमान जी की पूजा में इस कवच का दिन में तीन बार पाठ करने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके पाठ से साधक के असाध्य रोग नष्ट होते है. मान-सम्मान व कीर्ति में लाभ होता है व शत्रुओं का नाश होता है.
एकादशमुखी हनुमत्कवचम्
एकादशमुखी हनुमत्कवचम् का श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से साधक को किसी भी प्रकार के वाद-विवाद, भयानक कष्ट, ग्रह भय, जल, सर्प, दुर्भिक्ष, भयंकर शस्त्र और राजा से भय नहीं रहता है.
हनुमान साठिका
हनुमान जी की पूजा के लिए यह साठिका सरल भाषा में तुलसीदासजी के द्वारा व्यक्त हुआ है. हनुमान साठिका का यह पाठ भव बन्धन का भंजन करता है, साधक का कल्याण करता है.
हनुमान चालीसा
हनुमान जी की पूजा के लिए पढ़ी जाने वाली हनुमान चालीसा को भक्त शिरोमणि श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है. किसी भी कामना की पूर्ति के लिए इसे सात बार अथवा 101 बार पाठ करने का विधान है. पीपल अथवा शमी वृक्ष के नीचे बैठकर इसका पाठ करने से शनि का प्रकोप शान्त होता है.
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