धर्म-अध्यात्म

रूप बदल कर हनुमान जी पहुंचे भरत के सामने, मिल रहे थे ये शुभ संकेत

Tulsi Rao
19 May 2022 5:22 AM GMT
रूप बदल कर हनुमान जी पहुंचे भरत के सामने, मिल रहे थे ये शुभ संकेत
x

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Lord Ram Kahani: लंका में रावण से युद्ध कर उसका उद्धार करने के बाद प्रभु श्री राम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण के साथ अयोध्या में वापस आने में अब सिर्फ एक दिन ही बचा था लेकिन नगर वासी उनके दर्शन को व्याकुल हो रहे थे. अपने प्रभु के वियोग में दुर्बल हो चुके स्त्री पुरुष एक दूसरे से इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे कि अभी तक वे आए क्यों नहीं. इन्हीं चर्चाओं के बीच सुंदर शकुन होने लगे जिससे समस्त अयोध्यावासियों के मन प्रसन्न हो गए. नगर का वातावरण बहुत ही रमणीक हो गया, जिससे लगा कि यह सारे संकेत प्रभु के आगमन की सूचना दे रहे हैं. महारानी कौशल्या सहित सभी माताएं का मन आनंद से खिल उठा मानों कोई कह रहा है कि सीता और लक्ष्मण के राम आकर द्वार पर खड़े हैं

शुभ शकुन में भी भरत जी सोच में पड़ गए

भरत जी की दाहिनी आंख और दाहिनी भुजा बार-बार फड़क कर श्री राम के आगमन का शुभ शकुन व्यक्त कर रही थी फिर भी वे सोच में पड़ गए. वे सोचने लगे कि आखिर मेरे नाथ अभी तक क्यों नहीं आए. कहीं उन्होंने मुझे कुटिल जान कर भुला तो नहीं दिया. लक्ष्मण जी को बड़भागी समझते हुए वे सोचने लगे कि वे तो श्री राम के चरणों के प्रेमी हैं तभी तो उनसे अलग नहीं हुए. मुझे तो उन्होंने कपटी और कुटिल समझ लिया तभी तो साथ नहीं ले गए. यदि उन्होंने मेरी करनी पर ध्यान दिया तो असंख्य वर्षों तक भी इस पाप से मेरा निस्तारण नहीं हो पाएगा. मन ही मन वे तर्क करते है कि वे तो दीनबंधु और कोमल स्वभाव के हैं, वे अपने सेवक के अवगुण कभी नहीं मानेंगे और क्षमा कर देंगे.

रूप बदल कर हनुमान जी पहुंचे भरत के सामने

भरत जी विरह के विचारों में उलझे अपने को ही कोसते हुए श्री राम का ध्यान कर आंसू बहा रहे थे, तभी उनके सामने एक ब्राह्मण राम-राम जपते हुए पहुंचे और बोले, जिनकी विरह में आप दिन रात सोच कर घुलते जा रहे हैं और इतना दुर्बल हो गए हैं, वे ही रघुकुल तिलक, सज्जनों को सुख देने वाले और देवताओं तथा मुनियों के रक्षक श्री राम जी सकुशल आ गए हैं. शत्रु को रण में जीत कर सीता जी और लक्ष्मण जी सहित प्रभु आ रहे हैं, समस्त देवता उनका यश गा रहे हैं.

हनुमान जी को गले लगा कर रोने लगे भरत

ब्राह्मण रूपी हनुमान जी के प्रिय वचन सुनते ही भरत जी सारे दुख भूल गए और उनका परिचय पूछने लगे, हे तात, तुम कौन हो और कहां से आए हो जो तुमने मुजे आनंद देने वाले इतने प्रिय वचन सुनाए हैं. उन्होंने अपना पूरा परिचय देते हुए बताया, मैं पवन का पुत्र और जाति का वानर हूं, मेरा नाम हनुमान है. मैं तो दीनों के बंधु रघुनाथ जी का दास हूं. इतना सुनते ही भरत जी ने उठकर आदरपूर्वक हनुमान जी से गले लगकर मिले. उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगे और शरीर पुलकित हो गया.

Next Story