धर्म-अध्यात्म

Guru Arjan Dev Martyrdom Day, पढ़ें अर्जन देव जी की बलिदान गाथा

Triveni
14 Jun 2021 3:57 AM GMT
Guru Arjan Dev Martyrdom Day, पढ़ें अर्जन देव जी की बलिदान गाथा
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सिखों के 5वें गुरु अर्जन देव जी गुरु परंपरा का पालन करते हुए कभी भी गलत चीजों के आगे झुके नहीं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| सिखों के 5वें गुरु अर्जन देव जी गुरु परंपरा का पालन करते हुए कभी भी गलत चीजों के आगे झुके नहीं। उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान हो जाना स्वीकार किया, लेकिन मुगलशासक जहांगीर के आगे झुके नहीं। वे हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। सिख धर्म में वे सच्चे बलिदानी थे। उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ। 5 दिनों तक उनको तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा। अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया।

अर्जन देव जी की बलिदान गाथा
मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्टूबर, 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। उसके शासन में आते ही अर्जन सिंह जी के विरोधी सक्रिय हो गए और वे जहांगीर को उनके खिलाफ भड़काने लगे। उसी बीच शहजादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी। तब जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया, तो वह भागकर पंजाब चला गया। खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा। तब गुरु अर्जन देव जी ने उसका स्वागत किया और आशीर्वाद दिया।
जब इस बात की जानकारी जहांगीर को हुई तो वह गुरु जी पर गुस्सा हो गया। उसने गुरु जी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उधर गुरु जी बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर स्वयं लाहौर पहुंच गए। उन पर मुगल बादशाह जहांगीर से बगावत करने का आरोप लगा। जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी को यातना देकर मारने का आदेश दिया।
गुरु अर्जन देव जी से जुड़ी अन्य बातें
1. गुरु अर्जुन देव का जन्म वैशाख बदी 7, संवत 1620 यानी 15 अप्रैल, 1563 ई. को गोइंदवाल साहिब में हुआ था।
2. इनके पिता सिखों के चौथे गुरु रामदास जी और माता बीबी भानी थे। गुरु अमरदास जी इनके नाना थे।
3. अमृतसर साहिब में 'हरिमंदर साहिब' की स्थापना गुरु अर्जन देव जी ने ही कराई थी, जो सिखों का एक केंद्रीय आध्यात्मिक स्थान है।
4. गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया है, जो उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।
5. उनका पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है। वे दया और करुणा के सागर थे। वे समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे।


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