धर्म-अध्यात्म

दीपावली के बाद होती है गोवर्धन पूजा, श्रीकृष्ण ने जब खा लिया था इंद्र का भोग

Subhi
19 Sep 2022 2:17 AM GMT
दीपावली के बाद होती है गोवर्धन पूजा, श्रीकृष्ण ने जब खा लिया था इंद्र का भोग
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दीपावली के अगले दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का विधान है. यह पर्व भी लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण की एक लीला का ही हिस्सा है. शास्त्र कहते हैं कि जो भक्त गिरिराज जी महाराज के दर्शन करता है

दीपावली के अगले दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का विधान है. यह पर्व भी लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण की एक लीला का ही हिस्सा है. शास्त्र कहते हैं कि जो भक्त गिरिराज जी महाराज के दर्शन करता है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है, उसे कई तीर्थों और तप करने से भी हजारों गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है.

गोवर्धन पूजा की कथा

द्वापर युग में ब्रज के रहने वाले देवराज इंद्र के डर से उनकी छप्पन भोगों से पूजा किया करते थे. ऐसे समय में श्रीकृष्ण ने गोप और ग्वालों को इंद्र की पूजा करने के लिए प्रेरित किया और इतना ही नहीं इंद्र के भोग को स्वयं ही गोवर्धन के रूप में प्रकट होकर ग्रहण कर लिया. इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर देवराज ने ब्रज में इतनी अधिक वर्षा की कि पूरा ब्रज पानी से डूबने लगा. वहां रहने वाले सभी लोग अपना जीवन बचाने को व्याकुल हो गए. सभी लोग श्रीकृष्ण के पास आए और बोले कि अब तुम्ही बताओ हम क्या करें, कैसे बचें, क्योंकि तुम्हारे कहने पर ही हमने इंद्र की पूजा बंद की है. इस पर श्रीकृष्ण ने अपने हाथ की सबसे छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया और सभी ब्रज वासियों को उसके नीचे आने के लिए कहा. ऐसा करके श्रीकृष्ण ने इंद्र के प्रकोप और अतिवृष्टि से होने वाली जनधन की हानि को भी रोकने का काम किया. इंद्र ने इसके बाद भी वर्षा जारी रखी, किंतु जब देखा कि किसी का कोई नुकसान नहीं हो रहा है, क्योंकि सभी ने श्रीकृष्ण की शरण ले रखी है तो उनका अभिमान भी चूर- चूर हो गया. इंद्र ने भी आकर श्रीकृष्ण की शरण ली और अपनी गलती मानी और पूरे गांव में श्रीकृष्ण का गुणगान किया. इस पर पूरे ब्रज में उत्सव मनाया गया.

ऐसे की जाती है पूजा

तभी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा के दिन गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण का और गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजन किया जाता है. साथ ही गौ माता की भी पूजा की जाती है. वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं भी गोवर्धन पर्वत की पूजा कर यह संदेश दिया कि अहंकार और दुराचार के अंत के लिए सबको मिलकर प्रयास करना होगा.


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