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Govardhan Pooja: जानिए गोवर्धन पूजा का शुभ मूहर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
![Govardhan Pooja: जानिए गोवर्धन पूजा का शुभ मूहर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा Govardhan Pooja: जानिए गोवर्धन पूजा का शुभ मूहर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा](https://jantaserishta.com/h-upload/2020/11/12/850673-govardhan.webp)
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। धनतेरस के साथ ही पांच दिन चलने वाले दिवाली के त्योहार का भी आगाज हो गया है. दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. गोवर्धन पूजा इस साल 15 नवंबर को है. गोवर्धन का पर्व कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाते हैं और गोवर्धन भगवान की पूजा अर्चना करते हैं. चलिए आपको बताते हैं इस साल गोवर्धन पूजा का क्या शुभ मुहूर्त है.
इस शुभ मूहर्त पर करें गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पर्व 15 नवंबर 2020 को पड़ रहा है, तिथि है कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा. पूजा का सांय काल का शुभ मुहूर्त दोपहर के 3 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 24 मिनट तक का है. वहीं प्रतिपदा तिथि 15 नवंबर 2020 की सुबह 10 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और 16 नवंबर 2020 को सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर समाप्त होगी.
इस विधि के अनुसार करनी चाहिए गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह 5 बजे उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर शरीर पर तेल मलकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद घर के मुख्य दरवाजे पर गाय के गोबर से गोवर्धन बनाना चाहिए. इसके लिए गोबर से गोवर्धन की आकृति के साथ पर्वत, ग्वाल-बाल और पेड पौधों की आकृति भी बनानी चाहिए. ये हो जाने के बाद एकदम बीच में कृष्ण भगवान की मूर्ति रख दें. तत्पश्चात भगवान कृष्ण व बाल-ग्वाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. फूल-पुष्प भी अर्पित करें. इसके बाद अन्नकूट और पंचामृत का भोग लगाएं. इस विधि से पूजन करने के बाद कथा का श्रवण करें और अंत में प्रसाद देवें.
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को इंद्र देव को पूजने की बजाय गोवर्धन पर्वत को पूजने के लिए कहा था. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया था कि इंद्र को पूजने से कोई लाभ नहीं मिलता है. वर्षा करना तो उनका कार्य ही है और वह सिर्फ अपना काम करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत से गोकुलवासियों को गौ-धन का संवर्धन और संरक्षण मिलता है और पर्यावरण भी साफ और स्वच्छ रहता है. इसलिए इंद्र देव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए. वहीं जब इस बात का पता इंद्र देवता को चला तो उन्हे अपमान जैसा महसूस हुआ. इसके बाद उन्होंने गुस्से में आगबबूला होकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश करना शुरू कर दिया और ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराना चाहा. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने भी गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और गोकुलवासियों को इंद्र देवता के कोप का भाजन बनने से बचा लिया. बताया जाता है कि जब गोकुलवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली थी तब उन्होंने श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाए थे. जिससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने भी समस्त गोकुलवासियों की सदैव रक्षा करने का आशीर्वाद दिया था. इसी के बाद से इंद्र देवता की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी और ये परंपरा आज भी जारी है.
![Nilmani Pal Nilmani Pal](https://jantaserishta.com/h-upload/2023/10/01/3486221-untitled-102-copy.webp)