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- भावनाओं में छिपे होते...
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक जंगल में बहुत बड़ा तालाब था. तालाब के पास एक बगीचा था जिसमें कई तरह के पेड़ पौधे लगे थे. दूर-दूर से लोग वहां घूमने आते तो खूबसूरत फूलों को देखकर उनकी बहुत तारीफ करते.
गुलाब के पेड़ पर लगा पत्ता हर रोज लोगों को फूलों की तारीफ करते देखता, तो उसे लगता कि उसका जीवन व्यर्थ है, क्योंकि उसे कोई नहीं देखता और न ही उसकी तारीफ करता. ये सोचकर उसके अंदर हीन भावना जन्म लेने लगी.
एक दिन आंधी आई और बगीचे के पौधे तहस-नहस होने लगे. फूल झड़कर जमीन पर गिर गए और वो पत्ता भी गिरकर तालाब में पहुंच गया.
उसी तालाब में एक चींटी भी गिर गई थी और जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी.
तभी पत्ता उसके पास पहुंचा और उसे अपने उपर बैठा लिया. आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुंच गया और चींटी किनारे पर पहुंच कर बहुत खुश हुई. उसने पत्ते से कहा कि आप बड़े ही दयालु हैं. आज आपने मेरी जान बचाई है. आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
अपनी तारीफ सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला कि धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए क्योंकि आज तक मुझे सिर्फ यही लगता था कि मेरा जीवन किसी काम का नहीं है. लेकिन तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ, जिससे मैं आज तक अनजान था. आज पहली बार मैं अपनी ताकत को पहचान पाया हूं.
ऐसा ही अक्सर हम सब के साथ भी होता है. खुद के सामने दूसरों की तारीफ सुनते रहने से हम तारीफ की उम्मीद करने लगते हैं. इस प्रतिस्पर्धा में अपनी खुद की काबिलियत को देख ही नहीं पाते और तारीफ न मिलने से हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं. लेकिन याद रखिए ईश्वर ने हर किसी को किसी न किसी गुण से संपन्न बनाया है. बस जरूरत अपनी काबिलियत को पहचानने की है.