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- श्री कृष्ण के इस मूल...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क |बड़ों द्वारा आशीर्वाद तभी प्राप्त होता है जब कोई अपने ज्ञान, बल, विवेक, कला, धैर्य, तप अथवा शालीनता जैसे सात्विक गुणों का प्रदर्शन करता है। आशीर्वाद मिलने पर मन को विशेष हर्ष का अनुभव होता है और हम तेजी से लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। महाभारत युद्ध होने को था। कौरवों की तरफ ग्यारह अक्षौहिणी और पांडवों की तरफ सात अक्षौहिणी सेना खड़ी थी। अर्जुन जानता था कि कौरवों की सेना में अनेक बलशाली योद्धा हैं जिनमें गुरु द्रोण से लेकर इच्छा मृत्यु वरदान प्राप्त भीष्म पितामह जैसे योद्धा हैं। उनको जीत पाना बेहद कठिन कार्य था। स्वाभाविक था कि अर्जुन अपनी चिंता श्री कृष्ण से कहते।
उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा, ‘‘हे मधुसूदन! कौरवों की सेना हमारी सेना से चार अक्षौहिणी अधिक बड़ी है और योद्धा भी हमारी सेना से अधिक हैं, ऐसे में हम विजय कैसे प्राप्त कर सकेंगे?’’
इतना कह अर्जुन चिंतातुर हो गया। तभी अर्जुन को श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘हे पार्थ! जाओ प्रथम गुरु के चरणों में शीश झुकाओ। इसी तरह पितामह के चरण स्पर्श करके आओ।’’ अर्जुन भक्त था। वह बिना किन्तु-परंतु किए कृष्ण आज्ञा पालन करने चल पड़ा। उसने गुरु और पितामह के चरण स्पर्श किए तो बदले में उसे ‘विजयी भव’ का आशीर्वाद मिला।
भीम और युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा, ‘‘ऐसा करने की क्या आवश्यकता थी?’’ प्रत्युत्तर में कृष्ण ने कहा ,‘‘बड़ों का आशीर्वाद पाने का अर्थ है कि मन से आशीर्वाद देने वाला उसका हो जाता है, जिसको वह आशीर्वाद दे रहा हो। अब से हमारी सेना की शक्ति दोगुनी हो गई क्योंकि गुरु और पितामह दोनों अर्जुन के साथ हो गए। बेशक वे विरोधी खेमे की तरफ से युद्ध कर रहे हों।’’
महाभारत में पांडवों की जीत का यह पहला बड़ा कारण था। युद्ध में जीत केवल बलवान की नहीं होती, जीत के लिए नीति भी महत्वपूर्ण कारण बनती है। इस मूलमंत्र को आज की नई पीढ़ी सूक्ष्मता से नहीं लेती। बड़ों द्वारा आशीर्वाद से हमारे लिए किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना सरल हो जाता है। कुछ ही और प्रयास गंतव्य पर पहुंचा देते हैं। यह गंतव्य तक पहुंचने का सफल व पुराना ढंग है लेकिन इस ढंग में कुछ समय अधिक अवश्य लगता है क्योंकि एक-एक सीढ़ी पार करनी पड़ती है। पूर्ण सफलता के लिए कोई लघु मार्ग (शॉर्टकट) नहीं है। यह बड़ा कारण है कि नई पीढ़ी अपने बुजुर्गों के ज्ञान को कम आंक लेती है। धन प्राप्ति के मार्ग में वे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त करना चाहते हैं अर्थात रातों-रात करोड़पति बनने की इच्छा आवश्यकता से अधिक छलांग लगाने पर मजबूर कर देती है। दुष्टों को बुजुर्ग श्राप देते हैं इसलिए श्राप से हरसंभव बचना चाहिए क्योंकि जैसे आशीर्वाद चुपचाप अपना काम करता है उसी तरह श्राप भी अपना काम करता है। अंतत: यह सत्य है कि बड़ों का आशीर्वाद सफलता की कुंजी है।