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गौतम बुद्ध मगध की राजधानी में आए तो एक वृक्ष के नीचे बैठ कर मिलने आए सभी श्रद्धालुओं की भेंट स्वीकार करने लगे। सम्राट बिम्बिसार भी वहां आए और उन्होंने हाथी, घोड़े, भूमि, महल और अनेक वस्तुएं बुद्ध को भेंट कीं। सेठ और साहूकारों ने बेशकीमती जवाहरात भेंट में दिए। 1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करेंतभी एक वृद्ध महिला आधा फल लेकर आई और बुद्ध से बोली, ‘‘भगवन! मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है। मालूम पड़ा कि आप आए हैं तो उस वक्त मैं इस फल का आधा भाग खा चुकी थी। बस यही आधा फल आपके श्रीचरणों में अर्पित करना चाहती हूं। कृपया इसे ग्रहण करें, इंकार मत कीजिएगा।’’
इतना सुनते ही बुद्ध आसन से उतरे और अपने दोनों हाथ फैलाकर उस वृद्धा का जूठा आधा फल स्वीकार कर लिया।
यह देख कर वहां मौजूद लोगों और सम्राट को बहुत आश्चर्च हुआ, उनकी भृकुटियां तन गईं।
मगध के सम्राट ने जब इसका रहस्य पूछा तो भगवान बुद्ध बोले, ‘‘सभी ने अपनी बहुमूल्य सम्पत्ति का एक अंश मात्र दिया है। उसमें दान देने का अहंकार भी शामिल है। इस वृद्धा ने तो अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया है, लेकिन इसके मुख पर कितनी करुणा और विनम्रता है।’’
यह सुन कर सबका सिर झुक गया और तब उन्हें समझ आया की बुद्ध गरीबों के बीच इतने लोकप्रिय क्यों है।
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