धर्म-अध्यात्म

गौतम बुद्ध ने दिए जीवन को सुखी और सफलता के लिए सूत्र

Tara Tandi
26 May 2021 9:09 AM GMT
गौतम बुद्ध ने दिए जीवन को सुखी और सफलता के लिए सूत्र
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वैशाख मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | वैशाख मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा भी जगत के पालनकर्ता श्री हरि विष्णु भगवान(सत्य नारायण) को समर्पित होती है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या पीपल पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार यह पूर्णिमा 26 मई को मनाई जाएगी। इसी दिन भगवान बुद्ध की जयंती और निर्वाण दिवस भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा न सिर्फ भारत में अपितु दुनिया के कई अन्य देशों में भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। श्रीलंका, कंबोडिया, वियतनाम, चीन, नेपाल थाईलैंड, मलयेशिया, म्यांमार, इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। श्रीलंका में इस दिन को 'वेसाक' के नाम से जाना जाता है जो निश्चित रूप से वैशाख का ही अपभ्रंश है। इस दिन बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप प्रज्जवलित कर बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं । पुराणों में महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है। गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं,जिनमें सुखी जीवन और सफलता पाने के सूत्र छिपे हैं। यदि जीवन में इन सूत्रों को उतार लिया जाए तो हम कई प्रकार की परेशानियों से बच सकते हैं और सरलता से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

बुद्ध के चार सूत्र
वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन की तीन अहम बातें -बुद्ध का जन्म, बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति एवं बुद्ध का निर्वाण के कारण भी विशेष तिथि मानी जाती है। गौतम बुद्ध ने चार सूत्र दिए उन्हें 'चार आर्य सत्य ' के नाम से जाना जाता है । पहला है 'दुःख'। दूसरा है 'दुःख का कारण'। तीसरा है दुःख का निदान और चौथा मार्ग वह है जिससे दुःख का निवारण होता है,यही उनकाअष्टांगिक मार्ग भी है।
अष्टांगिक मार्ग
महात्मा बुद्ध ने बताया कि तृष्णा ही सभी दु:खों का मूल कारण है। तृष्णा के कारण संसार की विभिन्न वस्तुओं की ओर मनुष्य प्रवृत्त होता है,और जब वह उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता अथवा जब वे प्राप्त होकर भी नष्ट हो जाती हैं तब उसे दु:ख होता है। तृष्णा के साथ मृत्यु प्राप्त करने वाला प्राणी उसकी प्रेरणा से फिर भी जन्म ग्रहण करता है और संसार के दु:ख चक्र में पिसता रहता है।अत: तृष्णा को त्याग देने का मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है।भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग वह माध्यम है जो दुःख के निदान का मार्ग बताता है। उनका यह अष्टांगिक मार्ग ज्ञान,संकल्प,वचन,कर्म,आजीव,व्यायाम,स्मृति और समाधि के सन्दर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है। गौतम बुद्ध ने मनुष्य के बहुत से दुखों का कारण उसके स्वयं का अज्ञान और मिथ्या दृष्टि बताया है।
बुद्ध पूर्णिमा
महात्मा बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में प्रवचन दिया था उनका प्रथम उपदेश 'धर्मचक्र प्रवर्तन' के नाम से जाना जाता है जो उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली व उनके उपदेशों का अनुसरण किया। कुछ ही दिनों में पूरे भारत में 'बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामि' का जयघोष गूंजने लगा। उन्होंने कहा कि केवल मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं होता बल्कि क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा भी इंसान को अपवित्र बनाती है। मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन बिताना जरूरी है।भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही महानिर्वाण प्राप्त हुआ। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में एक महीने तक चलने वाले विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश विदेश के लाखों बौद्ध अनुयायी यहाँ पहुंचते हैं।वहीं आज के दिन बोधगया में जिस बोधिवृक्ष (पीपल वृक्ष) के नीचे भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी इस वृक्ष की जड़ों में दूध और सुगंधित पानी का सिंचन करके पूजा की जाती है।



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