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धर्म-अध्यात्म
Garuda Purana : जानिए पितृ पक्ष में श्राद्ध के भोजन का महत्त्व क्या हैं, तर्पण के नियम !
Tulsi Rao
15 Jun 2021 11:01 AM GMT
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हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो परिजन अपने शरीर को छोड़कर जा चुके हैं, वे चाहे किसी भी लोक में हों, तर्पण से उन्हें तृप्ति प्राप्त होती है. इसके अलावा पितरों का ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में जीवन जीने के तमाम नियमों के अलावा मृत्यु और उसकी मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए कुछ कर्म बताए गए हैं. मृत्यु के बाद के कर्मों में से एक है तर्पण और श्राद्ध. पितरों को जल दान देने को तर्पण किया जाता है. हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो परिजन अपने शरीर को छोड़कर जा चुके हैं, वे चाहे किसी भी लोक में हों, तर्पण से उन्हें तृप्ति प्राप्त होती है. इसके अलावा पितरों का ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पितर धरती पर आते हैं. इस दौरान उन्हें जो कुछ भी श्रद्धा के साथ अर्पित किया जाता है, वे खुशी से उसे ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं.
गरुड़ पुराण में भी मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए के लिए तर्पण और श्राद्ध के महत्व के बारे में बताया गया है. साथ ही तर्पण करने के नियम भी बताए गए हैं ताकि पितरों के निमित्त उन्हें अर्पित किया गया जल उन तक पहुंच सके. इसके अलावा गरुड़ पुराण में ये भी बताया गया है कि श्राद्ध में पितरों को अर्पित किया गया भोजन उन तक कैसे पहुंचता है. बता दें गरुड़ पुराण सनातन धर्म के 18 महापुराणों में से एक है. ये भगवान विष्णु की भक्ति का मार्ग दिखाता है. इसमें लोगों को जीवन जीने की शास्त्र संवत नीतियों के अलावा मृत्यु के बाद की स्थितियों और लोक-परलोक का जिक्र किया गया है.
जानें तर्पण के नियम
जल में दूध और तिल मिलाकर तर्पण करना चाहिए. तर्पण करते समय पितृ गायत्री मंत्र पढ़ते हुए, दक्षिण की ओर मुंह करें क्योंकि दक्षिण की दिशा पितरों की मानी जाती है. इसके बाद बाएं घुटने को ज़मीन पर लगाकर, जनेऊ, गमछा दाएं कंधे पर रखकर तर्पण करना चाहिए. तर्पण के लिए चांदी, तांबे या फिर पीतल के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए. स्टील के बर्तन से तर्पण नहीं करना चाहिए.
इस तरह पितरों तक पहुंचता है श्राद्ध का भोजन
अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि पितरों को अर्पित किया गया भोजन उन तक पहुंचता कैसे है. इसका भी जवाब गरुड़ पुराण में है. गरुड़ पुराण के मुताबिक विश्वदेव और अग्निश्रवा नामक दो दिव्य पितृ हैं. ये दोनों ही नाम गोत्र के सहारे अर्पित की हुई चीजों को पितरों तक पहुंचाते हैं. यदि हमारे पितर देव योनि में हों तो श्राद्ध का भोजन अमृत रूप में उन तक पहुंचता है. यदि मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में उन्हें भोजन मिलता है, पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में और यक्ष योनि में पान रूप में भोजन उन तक पहुंचाया जाता है
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