धर्म-अध्यात्म

इंद्रियों की शुद्धता का पर्व है गंगा दशहरा

Subhi
7 Jun 2022 2:55 AM GMT
इंद्रियों की शुद्धता का पर्व है गंगा दशहरा
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भीषण गर्मी के दिनों में जल की उपलब्धता के लिए लोकदेवता महादेव की जटा से गंगा का अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धरती पर हुआ। कथा है कि राजा भगीरथ अपने 60 हजार अभिशप्त पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा से ऋषि हो गए।

भीषण गर्मी के दिनों में जल की उपलब्धता के लिए लोकदेवता महादेव की जटा से गंगा का अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धरती पर हुआ। कथा है कि राजा भगीरथ अपने 60 हजार अभिशप्त पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा से ऋषि हो गए। ऋषि होते उन्होंने गंगा-अवतरण में पूर्वजों के प्रयासों पर जरूर मनन किया होगा। भगीरथ की दृष्टि पूर्वजों के उद्धार के साथ दसों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान पर भी जाती लग रही है, क्योंकि गंगा धरती पर आना नहीं चाहती थीं।

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मां गंगा को मालूम था कि उनकी पवित्रता और धवलता स्वर्गलोक की तरह नहीं रह पाएगी। लेकिन, भगीरथ के व्यापक लोक-कल्याण की भावना को देखते हुए महादेव ने गंगा को जब आदेश दिया, तब वह धरती पर आने के लिए बाध्य हो गईं। आध्यात्मिक दृष्टि से साधक, पूजक या उपासक जब कभी अपने इष्टदेव को प्रसन्न करने के लिए अभ्यर्थना करता है तो 'दिक्-बंध' (दिशाओं की अनुकूलता) मुद्रा में दसों दिशाओं से कृपा की वर्षा की कामना करता है। इस दृष्टि से दसों-दिशाओं में गंगा के व्यापक लोकहितकारी पथ निर्माण का दिवस है गंगा दशहरा।

शिव-तांडव स्रोत में गंगा के पृथ्वी पर आगमन के चित्रण में स्पष्ट उल्लेख है कि आग की तरह जलधारा 'धक-धक' कर रही है। स्वाभाविक है, मानव की आवश्यकता से अधिक जल की ऊर्जा को धरती के लोग सहन न कर पाते। ऐसी स्थिति में भगीरथ की सहायता करते प्रतीत होते हैं जह्नु ऋषि। गंगा की इसी असीम ऊर्जा से ऋषि का आश्रम तहस-नहस होना और ऋषि द्वारा गंगा को पी जाना, जल को मानवोपयोगी बनाने का कदम कहा जा सकता है। भगीरथ के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से पृथ्वी को सुसंपन्न करने की अभियांत्रिकी के महाभियान में ऋषि जह्नु के सहयोग से जिन मार्गों से गंगा प्रवाहित हुईं, उन सभी उत्तर भारतीय क्षेत्रों पर देवाधिदेव की असीम कृपा बरसती है, क्योंकि इन इलाकों के लोग कण-कण में शंकर की छवि निहारते हैं।


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