धर्म-अध्यात्म

Ganesh Chaturthi : श्री गणेशोत्सव का क्या है इतिहास, कैसा बना जन-जन का महोत्सव

Shiddhant Shriwas
10 Sep 2021 1:56 AM GMT
Ganesh Chaturthi : श्री गणेशोत्सव का क्या है इतिहास, कैसा बना जन-जन का महोत्सव
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गणों के अधिपति श्री गणेश जी प्रथम पूज्य हैं सर्वप्रथम उन्हीं की पूजा की जाती है, उनके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गणों के अधिपति श्री गणेश जी प्रथम पूज्य हैं सर्वप्रथम उन्हीं की पूजा की जाती है, उनके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती है। किसी भी कर्मकांड में श्री गणेश की पूजा-आराधना सबसे पहले की जाती है क्योंकि गणेश जी विघ्नहर्ता हैं, और आने वाले सभी विघ्नों को दूर कर देते हैं।

श्री गणेश जी लोक मंगल के देवता हैं, लोक मंगल उनका उद्देश्य है परंतु जहाँ भी अमंगल होता है, उसे दूर करने के लिए श्री गणेश अग्रणी रहते हैं। गणेश जी रिद्वी और सिद्धी के स्वामी हैं। इसलिए उनकी कृपा से संपदा और समृद्धि का कभी अभाव नहीं रहता है। श्री गणेश जी को दूर्वा और मोदक अत्यंत प्रिय है।

इस वर्ष 10 सितम्बर को श्री गणेश चतुर्थी है। भाद्रपद की शुक्लपक्ष चतुर्थी भगवान गणपति की प्राकट्य तिथि है। इस तिथि को गणेश जी की पूजा उपासना की जाती है पूरे देश में ग्यारह दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव का आरंभ भी इसी दिन होता है।

प्रत्येक माह कृष्णपक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस तरह यह व्रत प्रतिवर्ष तेरह बार मनाया जाता है क्योंकि भाद्रपद में दोनों चतुर्थी में यह व्रत किया जाता है, शुक्लपक्ष में केवल भाद्रपद माह की चतुर्थी को ही पूजा की जाती है। यह तिथि अति विशिष्ट है। इस तिथि की बड़ी महिमा है और इस तिथि को व्रत उपवास करके अनेक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। इस तिथि को रात्रि में चन्द्र दर्शन निषेध माना जाता है, जबकि शेष चतुर्थियों में चन्द्र दर्शन पुण्यफलदायक माना जाता है।

ज्योतिषशास्त्र में तीन गणों का उल्लेख मिलता है- देव, मनुष्य और राक्षस। गणपति समान रूप से देवलोक, भूलोक और दानव लोक में प्रतिष्ठित हैं। श्री गणेश जी ब्रह्मस्वरूप हैं और उनके उदर में यह तीनों लोक समाहित हैं इसी कारण इनको लंबोदर कहते हैं उनके उदर में सब कुछ समा जाता हैं और गणेश जी सब कुछ पचाने की क्षमता रखते हैं। लंबोदर होने का अर्थ है जो कुछ उनके उदर में चला जाता है, फिर वहाँ से निकलता नहीं है। गणेश जी परम रहस्यमय हैं, उनके इस रहस्य को कोई भेद नहीं सकता है।

श्री गणेशोत्सव का इतिहास

श्री गणेश उत्सव का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है। इसका पौराणिक एवं आध्यात्मिक महत्व है। इस उत्सव का प्रारंभ छत्रपति शिवाजी महाराज जी के द्वारा पुणे में हुआ था। शिवाजी महाराज ने गणेशोत्सव का प्रचलन बड़ी उमंग एवं उत्साह के साथ किया था, उन्होंने इस महोत्सव के माध्यम से लोगों में जनजाग्रति का संचार किया।

इसके पश्चात पेशवाओं ने भी गणेशोत्सव के क्रम को आगे बढ़ाया। गणेश जी उनके कुलदेवता थे इसलिए वे भी अत्यंत उत्साह के साथ गणेश पूजन करते थे। पेशवाओं के बाद यह उत्सव कमजोर पड़ गया और केवल मंदिरों और राजपरिवारों में ही सिमट गया। इसके पश्चात 1892 में भाऊसाहब लक्ष्मण जबाले ने सार्वजनिक गणेशोत्सव प्रारंभ किया।

स्वतंत्रता के पुरोधा लोकमान्य तिलक, सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा से अत्यंत प्रभावित हुए और 1893 में स्वतंत्रता का दीप प्रज्ज्वलित करने वाली पत्रिका 'केसरी' में इसे स्थान दिया। उन्होंने अपनी पत्रिका 'केसरी' के कार्यालय में इसकी स्थापना की और लोगों से आग्रह किया कि सभी इनकी पूजा-आराधना करें, ताकि जीवन, समाजऔर राष्ट्र में विघ्नों का नाश हो।

उन्होंने श्री गणेश जी को जन-जन का भगवान कहकर संबोधन किया। लोगों ने बड़े उत्साह के साथ उसे स्वीकार किया, इसके बाद गणेश उत्सव जन-आंदोलन का माध्यम बना। उन्होंने इस उत्सव को जन-जन से जोड़कर स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जनचेतना जाग्रति का माध्यम बनाया और उसमें सफल भी हुए। आज भी संपूर्ण महाराष्ट्र इस उत्सव का केंद्र बिन्दु है, परंतु देश के प्रत्येक भाग में भी अब यह उत्सव जन-जन को जोड़ता है।

गणेश चतुर्थी 2021 - फोटो : Pixabay

श्री गणेश उत्सव का महत्व

भाद्रपद चतुर्थी को गणपति स्थापना से आरंभ होकर चतुर्दशी को होने वाले विसर्जन तक गणपति विविध रूपों में पूरे देश में विराजमान रहते हैं। उन्हें मोदक तो प्रिय हैं ही, परंतु गणपति अकिंचन को भी मान देते हैं, अतः दूर्वा, नैवेद्य भी उन्हें उतने ही प्रिय हैं। गणेशोत्सव जन-जन को एक सूत्र में पिरोता है।

अपनी संस्कृति और धर्म का यह अप्रतिम सौंदर्य भी है, जो सबको साथ लेकर चलता है। श्रावण की पूर्णता, जब धरती पर हरियाली का सौंदर्य बिखेर रही होती है, तब मूर्तिकार के घर -आँगन में गणेश प्रतिमाएँ आकार लेने लगती हैं। प्रकृति के मंगल उदघोष के बाद मंगलमूर्ति की स्थापना का समय आना स्वाभाविक है।

श्री गणेश जी हमारी बुद्धि को परिष्कृत एवं परिमार्जित करते हैं और हमारे विघ्नों का समूल नाश करते हैं। गणेश जी का व्रत करने से जीवन में विघ्न दूर होते हैं एवं सदा मंगल होता है। अतः अपने जीवन के सभी प्रकार के विघ्नों के नाश एवं शुचिता व शुभता की प्राप्ति के लिए हमें श्री गणेश जी की उपासना करनी चाहिए।

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