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धर्म-अध्यात्म
Ganesh Aarti: गणेश चतुर्थी से गणेश महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है, स्थापना के बाद करें 'जय गणेश, जय गणेश देवा' की आरती, बनेंगे सब काज
Tulsi Rao
10 Sep 2021 12:33 PM GMT
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गणेश चतुर्थी से गणेश महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है. लोगों ने घर में बप्पा की स्थापना कर ली है. घर में बप्पा स्थापित करने के बाद उनकी विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. इतना ही नहीं, पूजा के बाद आरती की जाती है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Ganesh Chaturthi Aarti: गणेश चतुर्थी से गणेश महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है. लोगों ने घर में बप्पा की स्थापना कर ली है. घर में बप्पा स्थापित करने के बाद उनकी विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. इतना ही नहीं, पूजा के बाद आरती की जाती है और उन्हें मोदक, लड्डू आदि का भोग लगाया जाता है. गणपति को धूप लगाई जाती है. घर में बप्पा को स्थापित करने के बाद कई तरह के नियमों का पालन करना जरूरी होता है. घर पर कुछ खाने-पीने से पहले सारी चीजें बप्पा को भोग लगाई जाती हैं. बप्पा की सुबह-शाम आरती की जाती है. कहते हैं गणपति व्रत, पूजा और आरती से प्रसन्न होते हैं. ऐसे में आप भी अपने गणपति को प्रसन्न करने के लिए सुबह-शाम आरती किजीए. बप्पा की आरती में उनकी महिमा का बखान किया गया है. आइए डालते हैं एक नजर उनकी दोनों प्रचलित आरतियों पर-
गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
गणेश जी की आरती सिंदूर लाल चढ़ायो
सिंदूर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।
हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥1॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥धृ॥
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतत संपत सबही भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥3॥
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥
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