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माघ मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस तिथि को सूर्यदेव अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे और पूरी सृष्टि को प्रकाशित किया। इस सप्तमी को पूरे साल की सप्तमी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अचला सप्तमी को रथ सप्तमी, भानु सप्तमी और आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है।
इस तिथि को सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रथारूढ़ सूर्यदेव की पूजा की जाती है। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस तिथि पर अरुणोदय के दौरान सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है। अचला सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर उगते हुए सूर्य का दर्शन करें और उन्हें लाल रोली और लाल फूल मिलाकर जल अर्पित करें। यह व्रत सौभाग्य, सुंदरता व उत्तम संतान प्रदान करता है। इस दिन सुबह उठकर सूर्य नमस्कार करने से घर में सुख शांति आती है। इस दिन भक्ति भाव से किए पूजन से प्रसन्न होकर सूर्यदेव अपने भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, इसलिए इसे आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन तेल और नमक का त्याग करना चाहिए। सूर्यदेव की उपासना को रोग मुक्ति का मार्ग बताया गया है। इसलिए इसे आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन सूर्य देवता के स्वागत के लिए घरों में उनका और उनके रथ के साथ रंगोली बनाई जाती है। अचला सप्तमी के दिन सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। सूर्यदेव को अनार और लाल रंग की मिठाइयां या फिर गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इस दिन व्रत पूजन सामग्री, वस्त्र, भोजन आदि वस्तु का दान करने से शुभ फल प्राप्त होता है। इस दिन घर के मुख्य दरवाजे पर आम के पत्ते का बंदनवार लगाएं।