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इस दिन से दक्षिणायन हो जाते हैं सूर्यदेव, जप-तप और दान का है विशेष महत्व
सूर्यदेव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे संक्रांति कहा जाता है। सूर्यदेव के कर्क राशि में प्रवेश करने को कर्क संक्रांति नाम से जाना जाता है। कर्क संक्रांति के दिन से सूर्यदेव अगले छह माह के लिए दक्षिणायन हो जाते हैं और मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण होते हैं। इस अंतराल में विशेषकर भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। कर्क संक्रांति में रातें लंबी और दिन छोटे होने लगते हैं। इस दौरान नकारात्मक शक्तियां प्रबल होने लग जाती हैं, इसलिए कर्क संक्रांति के दौरान विशेष रूप से पूजा-पाठ किया जाता है।
कर्क संक्रांति पर पूजा-पाठ, जप-तप और दान करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन पवित्र नदी, तलाब या जल कुंड में स्नान किया जाता है। स्नान के बाद भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कर्क संक्रांति पर भगवान श्री हरि विष्णु के साथ सूर्यदेव की पूजा करने से अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कर्क संक्रांति पर अन्न, धन और वस्त्र दान का विशेष महत्व है। जल का दान भी किया जा सकता है। इस दिन पूजा-पाठ करने वाले लोगों को लाल रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन पीपल या बरगद का पौधा रोपना पुण्यदायक माना जाता है। मान्यता है कि कर्क संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से समस्त रोगों का नाश होता है और दोष दूर होते हैं। सूर्यदेव की उपासना से सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति और वैभव में वृद्धि होती है। इस दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए पिंडदान किया जाता है।