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धर्म-अध्यात्म
शुक्रवार यानी कल है कार्तिक पूर्णिमा, आइए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा की कथा
Kajal Dubey
18 Nov 2021 10:10 AM GMT
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धर्म शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा की बहुत महिमा बताई गई है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक पूर्णिमा 19 नवंबर, दिन शुक्रवार यानी कल है. धर्म शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा की बहुत महिमा बताई गई है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वर्ग से देवता आकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाते हैं. यह भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य के चित्त की शुद्धि होती है. भक्त इस खास दिन व्रत भी रखते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. इस मौके पर दिन देवी-देवताओं को खुश किया जाता है. इसीलिए इस दिन लोग पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर और दान-दक्षिणा करके पुण्य कमाते हैं. कार्तिक स्नान करने और भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों को अपार सौभाग्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा की कथा
कार्तिक पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली. जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया. जिसकी वजह से उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ. इसके बाद उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया. ब्रह्माजी प्रकट हुए तो असुरों ने अमर होने का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा.
तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाएं. हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें. एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें. उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो. ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया. ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए.
ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था. सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का. अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. इन दैत्यों से घबराकर सभी देवता भगवान भोलेनाथ की शरण में गए. देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए. इसके बाद विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया. चंद्रमा व सूर्य उस रथ के पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर उस रथ के घोड़े बने. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा. स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने. उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया.
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया. जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया. त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे. त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं
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