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आमलकी एकादशी के दिन जरूर करे इन नियमों का पालन, तभी सफल होगा आपका व्रत
हिंदी कैलेंडर के अनुसार साल भर में 24 एकादशी व्रत होते हैं। यानी हर माह में दो एकादशी तिथि पड़ती है। वहीं फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो हिंदू धर्म के अनुसार सभी एकादशियों का काफी महत्व माना गया है, लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया है। अमालकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। आमलकी एकादशी को रंगभरी एकदशी भी कहते हैं। यह अकेली ऐसी एकादशी है जिसका भगवान विष्णु के अलावा भगवान शंकर से भी संबंध है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा बाबा विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है। रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। आंवले के पूजन के कारण इस एकादशी को आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। इस बार अमालकी एकादशी 14 मार्च, सोमवार के दिन पड़ रही है। यदि आप आमलकी एकादशी व्रत रखते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा क्योंकि यह अन्य एकादशी व्रतों से थोड़ा सा भिन्न है। आइए जानते हैं आमलकी एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण नियमों के बारे में।
आमलकी एकादशी व्रत में आंवले के पेड़ के नीचे पूजा करनी चाहिए।
आमलकी एकादशी व्रत में आंवले के पेड़ के नीचे पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि आंवले के पेड़ में सभी देवताओं का वास होता है।
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की पूजा करनी चाहिए, यदि संभव न हों तो श्री विष्णु की पूजा कर सकते हैं।
मान्यता है कि भगवान विष्णु को आंवला अतिप्रिय है इसलिए आमलकी एकादशी की पूजा के समय आंवले का भी भोग विष्णु जी को अवश्य लगाएं।
पूजा के समय आमलकी एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से साधक की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
मन में किसी के भी प्रति द्वेष भाव न रखें । दूसरों को बुरा न बोलें और न ही गलत कार्य करें।