धर्म-अध्यात्म

लोहड़ी की लोक कथाएं, जानें-क्यों मनाते हैं लोहड़ी

Subhi
12 Jan 2022 2:01 AM GMT
लोहड़ी की लोक कथाएं, जानें-क्यों मनाते हैं लोहड़ी
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हर वर्ष 13 जनवरी को लोहड़ी मनाई जाती है। यह त्योहार नए फसल की तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस दौरान आग का अलाव जलाया जाता है। इस अलाव में गेंहूं की बालियों को अर्पित किया जाता है। इस दौरान आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, चिक्की, गुड़ से निर्मित चीजें डालते हैं। फिर आग के समीप बैठकर गीत गाते हैं और गज्जक और रेवड़ी खाते हैं। कुछ लोग नृत्य कर लोगों का मनोरजंन करते हैं। वहीं, रात्रि में मक्के की रोटी और सरसों का साग खाया जाता है। आइए, इसकी कथा जानते हैं-

लोहड़ी की कथा

लोहड़ी की कथा भगवान शिव और आदिशक्ति मां सती से जुड़ी है। धार्मिक मान्यता है कि दैविक काल में मां सती के अग्निकुंड में प्राण की आहुति देने के पश्चात मनाई गई। पौराणिक कथा है कि मां सती और भगवान शिव के विवाह से प्रजापति दक्ष प्रसन्न नहीं थे। कालांतर में एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया। इस आयोजन में प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। उस समय मां सती ने पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा भगवान शिव से जताई। साथ ही अनुमति भी मांगी। तब भगवान शिव ने मां सती से कहा-बिना आमंत्रण के किसी घर पर जाना उचित नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में सम्मान की जगह अपमान होता है। इसके लिए आप अपने पिता के घर न जाए। हालांकि, मां सती के न मानने पर भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब मां सती अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने पहुंची, तो वहां भगवान शिव के प्रति कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर मां सती बेहद कुंठित हुई। उस समय मां सती पिता द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में समा गईं। मां सती की याद में हर वर्ष लोहड़ी मनाई जाती है। अतः इस पर्व को मां सती के अग्नि कुंड के प्राण आहुति देने की याद में मनाया जाता है

प्रचलित कथा

इतिहासकारों की मानें तो मुग़ल काल में दुल्ला भट्टी नाम का एक लुटेरा था। वह पेशे से लुटेरा था, लेकिन दिल से बेहद नेक था। जुल्म और अत्याचार का वह पुरजोर विरोध करता था। जब कभी मुगल सैनिक हिन्दू लड़कियों को अगवा करता था, तो दुल्ला भट्टी उन लड़कियों को आजाद कराकर हिन्दू लड़कों से विवाह करा देता था। इस नेक कार्य के लिए दुल्ला भट्टी को लोग खूब पसंद करते थे। वर्तमान समय में भी लोग लोहड़ी के दिन गीतों के जरिए याद कर उन्हें धन्यवाद देते हैं।

लोहड़ी के गीत

सुंदर मुंदरिये होय,

तेरा कौन बेचारा होय।

दुल्ला भट्टी वाला होय,

दुल्ले धी बिआई होय।

सेर शक्कर पाई होय,

कुड़ी दे बोझे पाई होय,

कुड़ी दा लाल हताका होय।

कुड़ी दा सालु पाटा होय,

सालू कौन समेटे होय।"

गीत


"देह माई लोहड़ी,

जीवे तेरी जोड़ी,

तेरे कोठे ऊपर मोर,

रब्ब पुत्तर देवे होर,

साल नूं फेर आवां।"

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