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सावन का पहला प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। श्रावण मास का पहला प्रदोष व्रत 5 अगस्त 2021 को है। गुरुवार के दिन पड़ने के कारण इस व्रत को गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है। ऐसे में हर महीने प्रदोष व्रत दो बार रखा जाता है पहला कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को तो दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन। श्रावण का महीना भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रिय है और प्रदोष व्रत भी इन्हीं के लिए रखा जाता है। इसी कारण श्रावण मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का भी महत्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि जो भक्त प्रदोष व्रत को सच्चे मन से रखता है उस जातक की कुंडली से चंद्र दोष दूर होता है और मां गौरा और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए जानते हैं सावन के पहले प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व क्या है?
श्रावण प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ - 5 अगस्त 2021, को शाम 05 बजकर 09 मिनट
त्रयोदशी तिथि समाप्त - 6 अगस्त 2021, को शाम 06 बजकर 28 मिनट तक
सावन का पहला प्रदोष व्रत है खास
श्रावण मास का पहला प्रदोष व्रत खास इसलिए है क्योंकि यह व्रत गुरुवार के दिन पड़ रहा है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। गुरु प्रदोष व्रत के दिन श्रीराम रक्षा स्तोत्र का जाप अत्यंत लाभकारी माना जाता है। दरअसल भगवान शिव जी स्वयं भगवान श्रीराम को अपना आराध्य मानते हैं। इसलिए गुरु प्रदोष के दिन शिव-पार्वती की पूजा के साथ साथ भगवान विष्णु जी की आराधना करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन जल्दी सुबह उठकर स्नान करें। मन में प्रदोष व्रत को रखने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल पर गंगा जल छिड़कें और शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान शिव को जल चढ़ाकर भगवान शिव का मंत्र जपें। पूरे दिन निराहार रहें। शाम को पुनः भगवान शिव की आराधना करें। उन्हें शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं। अंत में शिव आरती के बाद प्रसाद बांटें और भोजन ग्रहण करें। इस दिन शिव चालीसा और शिवाष्टक का पाठ करना लाभकारी होता है।
भगवान शिव के मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
ॐ नमः शिवाय। ॐ आशुतोषाय नमः।
प्रदोष व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है शाप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था। जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख दरिद्रता भी दूर होती है।