- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- सावन का पहला मंगला...
धर्म-अध्यात्म
सावन का पहला मंगला गौरी व्रत, जानिए महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा
Bhumika Sahu
27 July 2021 2:18 AM GMT
x
आमतौर पर लोग सावन के सोमवार का व्रत रखते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सावन का मंगलवार भी बहुत खास होता है. खासतौर अगर सुहागिन महिलाएं इस व्रत को रखें तो उनका वैवाहिक जीवन सुखमय गुजरता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महादेव और पार्वती के पूजन के लिए सावन के महीने से श्रेष्ठ और क्या हो सकता है. इस पूरे महीने में महादेव के तमाम भक्त भगवान की पूजा के लिए सुबह से ही मंदिरों में पहुंच जाते हैं. 25 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो चुका है. आज 26 जुलाई को पहला सोमवार है. शास्त्रों में सावन के सोमवार का विशेष महत्व बताया गया है. महादेव के तमाम भक्त इस दिन भोलेनाथ और माता पार्वती को समर्पित व्रत रखते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सावन के महीने में जितना महत्व सोमवार का है, उतना ही मंगलवार का भी है. कहा जाता है कि यदि किसी के वैवाहिक जीवन में कोई समस्या हो, या विवाह में कोई अड़चन आ रही हो या संतान सुख प्राप्त न हो तो उसे मंगला गौरी का व्रत मंगलवार के दिन रखना चाहिए और माता पार्वती का पूजन विधि विधान के साथ करना चाहिए. 27 जुलाई को सावन का पहला मंगलवार पड़ रहा है. जानिए इस व्रत से जुड़ी खास बातें.
मंगला गौरी व्रत का महत्व
ज्यादातर इस व्रत को महिलाएं रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही उनके पति को दीर्घायु मिलती है. यदि नव विवाहित स्त्री इस व्रत को रहे, तो उसका पूरा वैवाहिक जीवन अच्छे से गुजरता है. वहीं जिन कन्याओं को मनचाहा वर न मिल पा रहा हो, उनको भी मंगला गौरी का व्रत रखना चाहिए या विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए. सावन के महीने में ही माता पार्वती की तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए थे और माता रानी से विवाह के लिए राजी हो गए थे. यदि कोई कन्या भी माता रानी का मंगला गौरी व्रत रखकर उनसे सुयोग्य वर की की कामना करे, तो माता उस कामना को जरूर पूरा करती हैं. लेकिन इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम पांच साल तक रखा जाता है. हर साल सावन में 4 या 5 मंगलवार के व्रत होते हैं. आखिरी व्रत वाले दिन उद्यापन किया जाता है.
ये है व्रत विधि
श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को सुबह उठकर स्नान आदि कर नए वस्त्र पहनें. चौकी पर आधे हिस्से में सफेद कपड़ा बिछाएं और आधे हिस्से में लाल कपड़ा बिछाएं. सफेद वाले हिस्से में चावल के नौ छोटे ढेर बनाकर नवग्रह तैयार करें. लाल हिस्से में गेहूं के सोलह ढेर बनाएं. इसके बाद चौकी पर अलग स्थान पर थोड़े से चावल बिछाकर पान का पत्ता रखें. पान पर स्वास्तिक बनाएं और गणपति बप्पा को विराजमान करें. इसके बाद गणपति जी की और नवग्रह का रोली, चावल, पुष्प, धूप आदि से विधिवत पूजन करें. गेहूं की ढेरियों का भी पूजन करें.
इसके बाद एक थाली में मिट्टी से माता मंगला गौरी की प्रतिमा बनाएं. इसे चौकी पर स्थापित करें. हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें और अपनी मनोकामना को कहकर उसे पूरा करने की मातारानी से विनती करें. इसके बाद मातारानी को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाएं. सोलह लड्डू, पान, फल, फूल, लौंग, इलायची और 16 श्रंगार का सामान चढ़ाएं. 16 बत्तियों वाला एक दीपक जलाएं या 16 अलग अलग दीपक जलाएं. इसके बाद मंगला गौरी व्रत की कथा पढ़ें. कथा पढ़े व माता की आरती गाएं. पूजा समाप्त होने पर सभी वस्तुएं ब्राह्मण को दान कर दें. व्रत चाहे निर्जला रहें या फलाहार लेकर, लेकिन कोशिश करें कि नमक का सेवन न करें. शाम को अपना व्रत खोलें.
मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में धर्मपाल नामक एक सेठ था. वो महादेव का बड़ा भक्त था. उसके पास धन, दौलत, वैभव की कोई कमी नहीं थी. लेकिन उसके कोई पुत्र न होने के कारण वह अत्यंत चिंतित और दुखी रहता था. कुछ समय बाद महादेव की कृपा से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. लेकिन ये पहले से निश्चित था कि 16 वर्ष की अवस्था में उस बच्चे की सांप के काटने से मृत्यु हो जाएगी. सेठ धर्मपाल ने अपने बेटे की शादी 16 वर्ष की अवस्था के पहले ही कर दी. जिस युवती से उसकी शादी हुई. वो पहले से मंगला गौरी का व्रत रख रही थी. व्रत के फल स्वरूप उस महिला की पुत्री के जीवन में कभी वैधव्य दुख नहीं आ सकता था. मंगला गौरी के व्रत के प्रभाव से धर्मपाल के पुत्र के सिर से उसकी मृत्यु का साया हट गया और उसकी आयु 100 वर्ष हो गई. इसके बाद दोनों पति पत्नी ने खुशी खुशी पूरा जीवन व्यतीत किया.
Next Story