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धर्म-अध्यात्म
संतान प्राप्ति के लिए करे शनि प्रदोष व्रत...पढ़ें यह विशेष कथा
Subhi
23 April 2021 5:12 AM GMT
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चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार 24 अप्रैल को है।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार 24 अप्रैल को है। ऐसे में कल शनि प्रदोष व्रत है। शनि प्रदोष के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन दौरान जो लोग व्रत रखते हैं, वे लोग शनि प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण करते हैं। शनि प्रदोष का व्रत संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है, इसलिए इसका विशेष महत्व होता है।
शनि प्रदोष पूजा मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि 24 अप्रैल को शाम 07:17 बजे प्रारंभ हो रही है, जो 25 अप्रैल को शाम 04:12 बजे तक है। ऐसे में शनि प्रदोष व्रत 24 अप्रैल को ही है। इस दिन आप शाम को 07 बजकर 17 मिनट से रात 09 बजकर 03 मिनट के मध्य तक भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं। शनि प्रदोष व्रत की पूजा के लिए 01 घंटा 46 मिनट का समय है।
शनि प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक सेठ अपने परिवार के साथ रहते थे। विवाह के काफी समय बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई। इस कारण से सेठ और सेठानी काफी दुखी रहते थे। घर में बच्चे की किलकारी सुनने के लिए वे व्याकुल थे। जैसे-जैसे समय व्यतीत हो रहा था, वैसे-वैसे उनकी उम्र भी बढ़ रहा थी।
एक दिन सेठ और सेठानी ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। शुभ घड़ी देखकर वे दोनों एक दिन तीर्थ यात्रा के लिए घर से निकल पड़े। अभी वे दोनों कुछ ही दूर गए थे कि उनको रास्ते में एक साधु मिल गए। महात्मा को देखकर वे दोनों वहीं रूक गए। उन्होंने सोचा कि तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं तो क्यों न इस महात्मा के आशीष भी ले लिया जाए।
सेठ और सेठानी उस साधु के पास जाकर श्रद्धापूर्वक बैठ गए। उस समय वे महात्मा ध्यान मुद्रा में लीन थे। थोड़े समय के बाद वे ध्यान से उठे। तब सेठ और सेठानी ने महात्मा को प्रणाम किया। साधु पति और पत्नि के इस व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुए। तब सेठ और सेठानी ने तीर्थ यात्रा पर जाने की बात बताई और अपने कष्ट के बारे में भी उनको अवगत कराया।
उनकी बातें सुनने के बाद साधु ने उनको शनि प्रदोष व्रत का महत्व बताया तथा उन दोनों को शनि प्रदोष का व्रत करने का सुझाव दिया। तीर्थ यात्रा से लौटकर आने के बाद उन दोनों ने नियमपूर्वक शनि प्रदोष का व्रत रखा और भगवान शिव की विधि विधान से आराधना की। कुछ समय बीतने के बाद सेठानी मां बन गई और उनके घर में बच्चे की किलकारी गूंजने लगी। इस प्रकार शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनको संतान की प्राप्ति हुई।
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