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हर व्यक्ति को पशु-पक्षियों से सीखने चाहिए ये गुण, जानिए क्या कहती है चाणक्य नीति
चाणक्य नीति मूल रूप से संस्कृत में लिखी गई है, बाद में इसका अंग्रेजी और कई अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया और हिंदी में भी। आधुनिक दुनिया में भी, लाखों लोग प्रतिदिन कौटिल्य नीति को अपनी भाषा में पढ़ते हैं और उससे प्रेरित होकर, कई राजनेता, व्यापारी अभी भी चाणक्य उद्धरण को आधुनिक जीवन में उपयोगी पाते हैं।आचार्य चाणक्य का ज्ञान राजनीति, व्यापार और धन के बारे में ज्ञान इतना सटीक है कि यह आज के युग में भी उपयोगी है। आचार्य चाणक्य का यह ज्ञान नीतिशास्त्र के रूप में जाना जाता है। चाणक्य नीति आपको अपने जीवन में कुछ भी हासिल करने में मदद करती है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस क्षेत्र में हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य को कहीं से भी अच्छे गुण सीखने को मिले तो उसे सीख लेना चाहिए फिर चाहे ये गुण किसी सिद्ध महात्मा, आम आदमी या फिर पशु-पक्षी से ही क्यों न मिलें। आचार्य चाणक्य के अनुसार इस दुनिया में कोई भी ऐसा जीव नहीं है, जिसे ईश्वर ने गुणों के साथ पृथ्वी पर न भेजा हो। ऐसे में हमें उसके गुणों का आदर करते हुए उससे जीवन की बड़ी सीख लेनी चाहिए। आइए जानते हैं वो कौन से गुण है जिन्हें पशु-पक्षियों से ग्रहण करने से मनुष्य को सफलता प्राप्त हो सकती है।
सिंह की तरह पूरी लगन से कार्य करना सीखें।
सिंह से सीखें ये गुण
प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्नरः कर्तुमिच्छति। सरिंभे तत्कार्य सिंहादेकं प्रचक्षते।।
काम छोटा हो या बड़ा, उसे एक बार हाथ में लेने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए। उसे पूरी लगन और सामर्थ्य के साथ करना चाहिए। जैसे सिंह पकड़े हुए शिकार को कदापि नहीं छोड़ता। सिंह का यह एक गुण अवश्य लेना चाहिए।
बगुले के समान अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को संयम में रखना सीखें।
बगुले से सीखें संयम
इंद्रियाणि च संयम्य बकवत् पंडितो नरः। वेशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्।।
सफल व्यक्ति वही है जो बगुले के समान अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को संयम में रखकर अपना शिकार करता है। उसी के अनुसार देश, काल और अपनी सामर्थ्य को अच्छी प्रकार से समझकर सभी कार्यों को करना चाहिए। बगुले से यह एक गुण ग्रहण करना चाहिए, अर्थात एकाग्रता के साथ अपना कार्य करे तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
मुर्गे से सीखें ये चार गुण।
प्रत्युत्थानं च युद्ध च संविभागं च बन्धुषु। स्व्यमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।।
ब्रह्मुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, बंधुओ में किसी वस्तु का बराबर भाग करना और स्वयं चढ़ाई करके किसी से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चारो बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए। मुर्गे में ये चारों गुण होते है। वह सुबह उठकर बांग देता है। दूसरे मुर्गे से लड़ते हुए पीछे नहीं हटता, वह अपने खाध्य को अपने चूजों के साथ बांटकर खाता है और अपनी मुर्गी को समागम में संतुष्ट रखता है।