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इस विद्या के जरिए सम्राट विक्रमादित्य ने भूत को बनाया था अपना दास
धार्मिक ग्रन्थ :धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि तंत्र मंत्र सीखने वाले साधक तमोगुणी होते हैं। पिचासी सीखने वाले तांत्रिक भूत-प्रेत की पूजा करते हैं। तांत्रिक बनना आसान नहीं होता है। जब भूत-प्रेत मायावी शक्ति से तांत्रिक की परीक्षा लेता है तो कमजोर दिल वाले साधक तंत्र साधना को बीच में ही छोड़ देते हैं। इससे उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इस विद्या के जरिए सम्राट विक्रमादित्य ने भूत को बनाया था अपना दास
इस विद्या के जरिए सम्राट सनातन धर्म में पवित्र ग्रंथ 'गीता' को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। इस ग्रंथ में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम शिष्य अर्जुन को उपदेश दिया है। इसमें उन्होंने कर्म योग, भक्ति योग, सांख्य योग, संन्यास योग, ज्ञान विज्ञान योग, अक्षर ब्रह्मयोग, राजगुह्य योग, विभूति योग, दर्शन योग, गुणत्रय योग, पुरुषोत्तम योग, श्रद्धात्रय योग, मोक्ष योग के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। पवित्र ग्रंथ 'गीता' के 14 वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे अर्जुन! प्राकृतिक शक्ति तीन प्रकार के गुणों से निर्मित है। ये तीन गुण सतो, रजो और तमो हैं। सतोगुण प्रवृति के लोग सात्विक होते हैं। ऐसे लोग परम पिता परमेश्वर की पूजा करते हैं। रजोगुण प्रवृति के लोग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। वहीं, तमोगुण प्रवृति के लोग भूत-प्रेत की पूजा कर विषम कार्यों में सिद्धि प्राप्त करते हैं।
धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि तंत्र मंत्र सीखने वाले साधक तमोगुणी होते हैं। इसमें भी कई वर्ग हैं। तांत्रिक जगत जननी आदिशक्ति और भगवान शिव के भी उपासक होते हैं। वहीं, पिचासी सीखने वाले तांत्रिक भूत-प्रेत की पूजा करते हैं। तांत्रिक बनना आसान नहीं होता है। जब भूत-प्रेत मायावी शक्ति से तांत्रिक की परीक्षा लेता है, तो कमजोर दिल वाले साधक तंत्र साधना को बीच में ही छोड़ देते हैं। इससे उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब तांत्रिक सिद्धि पाने वाला होता है या सिद्धि के करीब होता है, तो भूत तांत्रिक को डराने की कोशिश करता है। इसके लिए अघोड़ी तांत्रिक हमेशा ही अग्नि बेताल सिद्धि करने से पहले रक्षा मंत्र बांधने की सलाह देते हैं। साथ ही गुरु के सानिध्य में ही अग्नि बेताल सिद्धि करने के लिए कहते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने अग्नि बेताल सिद्धि प्राप्त कर ही बेताल को वश में कर लिया था ? आइए, अग्नि बेताल सिद्धि के बारे में सबकुछ जानते हैं सम्राट विक्रमादित्य इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि सम्राट विक्रमादित्य महान योद्धा थे। वे महान सम्राट, कुशल शासक, धर्म ज्ञाता, पराक्रमी और अखंड भारत के निर्माता थे। उनके दरबार में नवरत्न रहते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि दरबार में नवरत्नों की प्रथा के जनक भी सम्राट विक्रमादित्य हैं। सम्राट विक्रमादित्य के दरबार की शोभा बढ़ाने वाले नवरत्न एक से बढ़कर एक थे। इनमें एक बेताल भट्टराव थे। इन्होंने बेताल पचीसी की रचना की है। बेताल भट्ट का शाब्दिक अर्थ भूत-प्रेत का पंडित होता है। हालांकि, इनके नाम को लेकर ठोस तथ्य वर्तमान समय में उपलब्ध नहीं है। आचार्य चाणक्य की तरह उनके भी कई नाम हो सकते हैं। हालांकि, साक्ष्य उपलब्ध नहीं है
इतिहासकारों की मानें तो बेताल भट्ट उज्जैन के श्मशान से वाकिफ थे। आसान शब्दों में कहें तो शमशान में उनका आना-जाना रहता था। ऐसा भी कहा जाता है कि उन्होंने बेताल को भी शिक्षा दी है। हालांकि, इसका कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिला है। कई इतिहासकारों का कहना है कि बेताल भट्ट बेताल पचीसी के प्रकांड पंडित थे। उन्हें सम्राट विक्रमादित्य और उज्जैन के श्मशान में रहने वाले बेतालों की शक्ति की पूरी जानकारी थी। इसके लिए उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य को अग्नि बेताल सिद्धि प्राप्त करने की सलाह दी थी। गुरु के सानिध्य में रहकर सिद्धि करने के चलते विक्रमादित्य सिद्धि पाने में सफल भी हुए थे। दावा किया जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने अग्नि बेताल सिद्धि के जरिए दो बेतालों को अपने वश में कर लिया था। इसका वर्णन बेताल भट्ट की रचना बेताल पचीसी में है।
क्या है अग्नि बेताल सिद्धि ? ज्योतिषियों की मानें तो वर्तमान समय में भी तांत्रिक अग्नि बेताल सिद्धि करते हैं। बेताल के जरिए साधकों को सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। तांत्रिक या सीखने वाले साधक, बेताल से मनचाहे काम पूरा कराता है। वहीं, बेताल आने वाली सभी मुसीबतों की जानकारी साधक को देता है। साथ ही आने वाली बला को भी टालता है। इससे साधक या उसका परिवार बुरे संकट से बच जाते हैं। इस सिद्धि में भगवान शिव की उपासना की जाती है। हालांकि, कमजोर दिल वाले अग्नि बेताल सिद्धि कभी न करें।