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धर्म-अध्यात्म
आज से शुरू हो गया नया इस्लामी साल, जानिए किस दिन है मुहर्रम, महत्व
Rani Sahu
10 Aug 2021 8:42 AM GMT
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अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक आज 10 अगस्त से नया इस्लामिक साल 2021 (Islamic New Year 2021) शुरू हो चुका है
अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक आज 10 अगस्त से नया इस्लामिक साल 2021 (Islamic New Year 2021) शुरू हो चुका है. इस्लामिक साल के पहले महीने को मुहर्रम का महीना कहा जाता है. मुहर्रम के महीने के 10वें दिन रोज-ए-आशूरा होता है. इसी दिन मुहर्रम मनाया जाता है. इस बार मोहर्रम 20 अगस्त, 2021 को है.
आशूरा को इस्लामिक इतिहास के सबसे निंदनीय दिनों में से एक माना जाता है. ये मातम का पर्व होता है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में तमाम देशों में शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और इमाम हुसैन के इंसानियत के पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं.
ये है इमाम हुसैन की शहादत की कहानी
इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद के नाती थे, जो कर्बला की जंग में शहीद माने हुए थे. कहा जाता है कि मोहम्मद साहब के मरने के लगभग 50 वर्ष बाद मक्का से दूर कर्बला के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया था. तब के कर्बला को आज सीरिया कहा जाता है. इसके बाद यजीद ने लोगों को खौफ में लाने के लिए उन पर अत्याचार शुरू कर दिया.
यजीद की मंशा इस्लाम का शंहशाह बनने की थी और वो पूरे अरब पर कब्जा करना चाहता था.
उस समय इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया. इमाम हुसैन की बगावत से नाराज होकर यजीद ने अपने राज्यपाल वलीद पुत्र अतुवा को फरमान लिखा, 'तुम हुसैन से मेरे आदेश का पालन करवाओ, अगर वो नहीं माने तो उसका सिर काटकर मेरे पास भेजा जाए.'
राज्यपाल ने हुसैन को राजभवन बुलाकर यजीद का फरमान सुनाया, लेकिन इमाम हुसैन ने अपने घुटने नहीं टेके और यजीद को व्याभिचारी बताकर उसका आदेश मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुंचे, ताकि हज पूरा कर सकें. वहां यजीद ने अपने सैनिकों को यात्री बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेजा. इस बात का पता हुसैन को चल गया.
मक्का जैसे पवित्र स्थान पर हत्या को हराम मानते हुए उन्होंने खून-खराबे से बचने के लिए वे हज के बजाय उसकी छोटी प्रथा उमरा करके परिवार सहित इराक चले आए. मोहर्रम महीने की दो तारीख 61 हिजरी को हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे. 9 तारीख तक यजीद की सेना को सही रास्ते पर लाने के लिए वे कोशिश करते रहे. किसी के न मानने पर हुसैन ने कहा कि मुझे एक रात अल्लाह की इबादत के लिए दे दो. इस रात को 'आशूर की रात' कहा जाता है.
हुसैन के काफिले में 72 लोग थे और यजीद के पास 8000 से अधिक सैनिक थे. लेकिन फिर भी उन लोगों ने यजीद की सेना का डटकर सामना किया. हालांकि युद्ध करते करते हुसैन के सारे 72 फॉलोअर्स मारे गए. सिर्फ हुसैन जिंदा बच गए. ये लड़ाई मुहर्रम 2 से 6 तक चली. आखिरी दिन हुसैन ने अपने साथियों को कब्र में दफन कर दिया. 10वें दिन जब हुसैन नमाज अदा कर रहे थे, तभी यजीद ने उन्हें धोखे से मरवा दिया.
हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान की थी. इसलिए इस दिन को आशूर यानी मातम का दिन माना जाता है. इस दिन उनकी कुर्बानी को याद किया जाता है. ताजिया निकाला जाता है.
ये हैं इस्लामी साल के 12 महीने
1. मोहर्रम
2. सफ़र
3. रबी अल-अव्वल
4. रबी- उस्सानी
5. जमाद अल-अव्वल
6. जमादुस्सानी
7. रजब
8. शाबान
9. रमज़ान
10. शव्वाल
11. ज़िलकाद
12. ज़िल हिज्ज
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