धर्म-अध्यात्म

Dussehra: राजस्थान के इस शहर में पूजे जाते हैं लंकापति दशानंद

Tara Tandi
5 Oct 2024 12:47 PM GMT
Dussehra: राजस्थान के इस शहर में पूजे जाते हैं लंकापति दशानंद
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Dussehra दशहरा: राजस्थान विश्वभर में अपने त्यौहार, संस्कृति और विरासत के लिए प्रसिद्ध है, ऐसा ही एक प्रमुख त्यौहार है दशहरा, दशहरा यानि बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव, इस दिन राजस्थान के साथ पूरे विश्व में रावण को जलाकर भगवान राम की जीत का उत्सव मनाया जाता है, विश्वभर की प्रथाओं के विपरीत दुनिया में एकमात्र राजस्थान में ऐसी जगह है जहां रावण को जलाने की जगह लंकेश की पूजा अर्चना की जाती है, तो जानतें हैं क्यों यहां के लोग रावण को मानते हैं अपना दामाद और समझते हैं इसके पीछे का इतिहास
हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक दशहरा इस साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानि शनिवार 12 अक्टूबर को मनाया जायेगा, इस मोके पर सम्पूर्ण राजस्थान में लंकापति रावण के पुतलों का दहन होगा, लेकिन जब जोधपुर में रावण दहन हो रहा होगा तो रावण के चबूतरे से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित चांदपोल के पास कुछ लोग शोक मना रहे होंगे। रावण के वंशज के रूप में जाने जाने वाले जोधपुर के श्रीमाली गोधा ब्राह्मण दशहरे के दिन को रावण के शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। महाज्ञानी और पंडित लंकापति रावण को इस समुदाय के लोग पूजते हैं और उनकी स्मृति में यहां उनके नाम पर मंदिर भी बनाया गया है, जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा-अर्चना की जाती है।
जोधपुर के किला रोड पर स्थित इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की मूर्ति लगी है, जिसका निर्माण गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों द्वारा करवाया गया है। दशहरे के दिन शहर के बाकि हिस्सों में रावण दहन के बाद ये लोग स्नान कर अपनी जनेव बदलने के बाद माफ़ी या शोक जाहिर करने के लिए रावण की पूजा करते हैं। रावण के वंशज गोधा गोत्र के कुछ लोग रावण को अपना पूजनीय पूर्वज तो कुछ लोग रावण को दामाद मानकर कभी भी रावण दहन नहीं देखते हैं।
लंकेश के इस मंदिर के पुजारी के अनुसार मायासुर ने ब्रह्माजी के आशीर्वाद से अप्सरा हेमा के लिए जोधपुर में आने वाले मंडोर शहर का निर्माण किया था और इन दोनों को एक संतान हुई थी जिनका नाम मंदोदरी था। लंकाधिपति रावण और मंदोदरी के विवाह के समय बराती बन कर आये लंका के कुछ लोग शादी के बाद यहीं रुक गए और कभी वापस नहीं गए। इन्हीं लोगों को आगे चलकर गोधा गोत्र के रूप में जाना जाने लगा जिन्हें राजस्थान में श्रीमाली के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए यहां के कुछ लोग रावण को अपना पूर्वज तो वहीँ कुछ दामाद मानते हैं और इसी के चलते विजयदशमी के दिन रावण दहन हो जाने के बाद रावण के वंशज अपनी जनेऊ बदल कर स्नान करते हैं तथा उसके बाद दशानन रावण के मंदिर में आकर पूजा अर्चना करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं।
आप सभी दर्शकों को आपका राजस्थान परिवार की ओर से दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं, उम्मीद है आपको ये वीडियो पसंद आया होगा, अगर आप इसी तरह की ओर लोक कथाओं और कहानियों के बारे में जानना चाहते हैं तो कमेंट कर हमे बताएं की हमारा अगला वीडियो क्या होना चाहिए।
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