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केदार बाबा की डोली गौरीकुंड से गुरुवार शाम को केदारनाथ पहुंच गई।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केदारनाथ धाम के कपाट शुक्रवार सुबह 6:25 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। केदार बाबा की डोली गौरीकुंड से गुरुवार शाम को केदारनाथ पहुंच गई। इस मौके पर मंदिर को फूलों से सजाया गया है। गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंची डोली यात्रा में सैकड़ों की संख्या में भक्त भी बाबा के जयकारों के साथ पहुंचे। कई जगहों पर ग्लेशियरों को काटकर रास्ता बनाया गया है। धाम में मौसम बेहद सर्द बना हुआ है। गुरुवार दिन में धाम में बारिश से कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। 23000 से अधिक तीर्थयात्री यात्रा शुरू होने के दो दिन में गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में पहुंच चुके हैं। मंदिर परिसर को 10 क्विंटल फूलों से सजाया गया है।
मौसम विभाग ने कहा है कि, आज और कल गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ में बारिश की संभावना है। 8 और 9 मई को मौसम साफ रहेगा। जबकि 10 और 11 को फिर से चारधाम के ऊंचाई वाले इलाकों में हल्की बारिश की संभावना है। डोली के केदारनाथ पहुंचने के मौके पर बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय, विधायक शैलारानी रावत, मंदिर समिति सदस्य श्रीनिवास पोस्ती आदि उपस्थित रहे।
पांडवों को मिला था यहां भगवान शिव का आशीर्वाद-
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडव इस स्थान पर अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए आए थे। पांडव भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन भोलेनाथ पांडव से नाराज थे। पांडव भगवान शिव के दर्शन न कर सके इसलिए भगवान शंकर अंतध्र्यान होकर केदारनाथ आ गए। पांडव भी भगवान शंकर के पीछे चल पड़े। तब शिवजी ने भैंस का रूप ले लिया और अन्य पशुओं के झुंड में मिल गए। उस वक्त भी पांडवों ने हार नहीं मानी। भीम ने अपने पैरों को फैलाकर दो पहाड़ों तक फैला दिया। ऐसा करने के बाद सभी भैंस व अन्य पशु तो निकल गए लेकिन भगवान शिव ने पैर के नीचे से जाने से इंकार कर दिया। तब भीम ने बैल को पकड़ने की कोशिश की लेकिन भगवान शिव बैल रूप में भूमि में समा गए। इस बीच भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के इस प्रयास से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पांडवों को दर्शन दिए। पांडवों ने भगवान शिव से हाथ जोड़कर विनती की और शिवजी ने उन्हें पाप से मुक्त कर दिया। तभी से भगवान शंकर बैल की की पीठ की आकृति को केदारनाथ में पूजा जाता है।
समाधि से बाहर आ गए बाबा केदारनाथ-
मान्यता है कि बाबा केदारनाथ छह महीने समाधि में रहते हैं। मंदिर के कपाट बंद होने के अंतिम दिन चढ़ावे के बाद सवा क्विंटल भभूति चढ़ाई जाती है। कपाट खुलने के साथ ही बाबा केदारनाथ समाधि से जागते हैं। इसके बाद भक्त दर्शन करते हैं।
शैव लिंगायत विधि से बाबा केदारनाथ की पूजा-अर्चना
देश-दुनिया में प्रसद्धि केदारनाथ धाम के कपाट खुलने का इंतजार भक्तों को उत्सुकता से रहता है। केदारनाथ धाम के कपाट खुलने पर बाबा केदारनाथ की विधिवत पूजा की जाती है। हालांकि उत्तर भारत में पूजा का तरीका थोड़ा अलग है, लेकिन बाबा केदारनाथ में पूजा दक्षिण की वीर शैव लिंगायत विधि से होती है। मंदिर के गद्दी पर रावल विराजते हैं, जिन्हें प्रमुख भी कहा जाता है। मंदिर में रावल के शिष्य पूजन करते हैं। रावल यानी पुजारी, जो कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं।
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