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सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार मनाए जाते हैं जिसमें संकष्टी चतुर्थी का व्रत भी शामिल हैं जो कि श्री गणेश की आराधना व पूजा के लिए उत्तम माना जाता हैं। हर माह में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि श्री गणेश की पूजा को समर्पित होती हैं अभी आषाढ़ का महीना चल रहा हैं और इस माह पड़ने वाली चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि आज यानी 7 जून दिन बुधवार को मनाई जा रही हैं।
इस दिन भक्त श्री गणेश की उपासना आराधना करते हैं और व्रत भी रखते हैं मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी पर गणपति की आराधना उत्तम फल प्रदान करती हैं और जीवन के सभी कष्टों का अंत कर देती हैं लेकिन इसी के साथ ही आज के दिन पूजन के बाद अगर गणेश मंत्र का जाप किया जाए तो भगवान अपने भक्तों का बेड़ा पार लगाते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री गणेश के चमत्कारी मंत्र।
श्री गणेश के सबसे चमत्कारी मंत्र—
श्री गणेश स्तुति—
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
श्री गणेश गायत्री मंत्र—
ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।
प्राण प्रतिष्ठा मंत्र—
अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।
विघ्नहरण मंत्र—
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥
बाधा मुक्ति मंत्र—
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
द्वादश नाम मंत्र—
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।'
सिद्धि मंत्र—
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
कार्य पूर्ति मंत्र—
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
गणेश स्तुति मंत्र—
ॐ श्री गणेशाय नम:।
ॐ गं गणपतये नम:।
ॐ वक्रतुण्डाय नम:।
ॐ हीं श्रीं क्लीं गौं ग: श्रीन्महागणधिपतये नम:।
ॐ विघ्नेश्वराय नम:।
गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितम्।
उमासुतं शोक विनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।
श्री गणेश आह्वान मंत्र—
गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।
Tara Tandi
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