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धर्म-अध्यात्म
श्रावण मास में पड़ने वाले मंगला गौरी व्रत में करें ये काम, इच्छा होगी पूरी
Tara Tandi
29 Jun 2023 2:31 PM GMT

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सनातन धर्म में श्रावण मास को बेहद ही खास माना जाता हैं जो शिव और गौरी की पूजा अर्चना को समर्पित होता हैं इस दौरान भक्त देवी देवता को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं। सावन महीने में जितना महत्व सावन सोमवार हैं उतना ही महत्वपूर्ण सावन में पडने वाले मंगला गौरी व्रत का भी हैं जो कि माता पार्वती की पूजा को समर्पित दिन माना जाता हैं इस दिन भक्त उपवास रखते हुए देवी मां पार्वती की विधिवत पूजा करते हैं।
कहा जाता है कि श्रावण मास में पड़ने वाले मंगला गौरी व्रत पूजन को करने से सुख समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती हैं ऐसे में अगर आप इस व्रत को रख रहे हैं तो पूजा के बाद गौरी स्तोत्र का पाठ जरूर करें माना जाता हैं कि इस चमत्कारी पाठ को करने से माता भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण कर देती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री गौरी स्तोत्र पाठ।
श्री गौरी स्तोत्र
ॐ रक्ष-रक्ष जगन्माते देवि मङ्गल चण्डिके।
हारिके विपदार्राशे हर्षमंगल कारिके।।
हर्षमंगल दक्षे च हर्षमंगल दायिके।
शुभेमंगल दक्षे च शुभेमंगल चंडिके।।
मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगल मंगले।
सता मंगल दे देवि सर्वेषां मंगलालये।।
पूज्ये मंगलवारे च मंगलाभिष्ट देवते।
पूज्ये मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।
मंगला धिस्ठात देवि मंगलाञ्च मंगले।
संसार मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।।
देव्याश्च मंगलंस्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः।
प्रति मंगलवारे च पूज्ये मंगल सुख-प्रदे।।
तन्मंगलं भवेतस्य न भवेन्तद्-मंगलम्।
वर्धते पुत्र-पौत्रश्च मंगलञ्च दिने-दिने।।
मामरक्ष रक्ष-रक्ष ॐ मंगल मंगले।
मंगला गौरी स्तुति
जय जय गिरिराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनी दुति गाता॥
देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
मोर मनोरथ जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबही के॥
कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मुरति मुसुकानि॥
सादर सियं प्रसादु सर धरेऊ।
बोली गौरी हरषु हियं भरेऊ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सूचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥

Tara Tandi
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