धर्म-अध्यात्म

Pitru Paksha के ​तीसरे दिन पिंडदान के समय कर लें यह काम

Tara Tandi
20 Sep 2024 9:54 AM GMT
Pitru Paksha के ​तीसरे दिन पिंडदान के समय कर लें यह काम
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Pitru Paksha ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल पितृपक्ष का आरंभ 18 सितंबर दिन बुधवार से हो चुका है और इसका समापन 2 अक्टूबर दिन बुधवार को हो जाएगा। ऐसे में आज यानी 20 सितंबर को पितृपक्ष का तीसरा दिन है जो पितरों के लिए बेहद खास माना गया है इस दिन व्यक्ति अपने मृत परिजनों को याद कर उनका श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करते हैं
माना जाता है कि पितृपक्ष के दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के द्वारा श्राद्ध ग्रहण कर उन्हें सुख समृद्धि का
आशीर्वाद प्रदान
करते हैं। ऐसे में अगर आप भी पूर्वजों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आज पितृपक्ष के तीसरे दिन पितरों का श्राद्ध तर्पण जरूर करें साथ ही साथ गंगा चालीसा का पाठ भी करें माना जाता है कि इस पाठ को करने से सुख शांति जीवन में आती है और पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
॥गंगा चालीसा॥
''दोहा''
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जय जय जय जग पावनी,
जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी,
अनुपम तुंग तरंग॥
चौपाई
जय जय जननी हरण अघ खानी।
आनंद करनि गंग महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल दलनि विख्याता॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु साजे।
लखि शत शरद चंद्र छवि लाजे॥
वाहन मकर विमल शुचि सोहै।
अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥
जड़ित रत्न कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरणितम दूषण॥
जग पावनि त्रय ताप नसावनि।
तरल तरंग तंग मन भावनि॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधाना।
तिहूं ते प्रथम गंगा स्नाना॥
ब्रह्म कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
साठि सहस्त्र सागर सुत तारयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥
अगम तरंग उठ्यो मन भावन।
लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट।
धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥
धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढी।
तारणि अमित पितु पद पिढी॥
भागीरथ तप कियो अपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥
जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाटा महं रह्यो समाई॥
वर्ष पर्यंत गंग महारानी।
रहीं शम्भू के जटा भुलानी॥
पुनि भागीरथी शंभुहिं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भइ त्रय धारा।
मृत्यु लोक, नाभ, अरु पातारा॥
गईं पाताल प्रभावति नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि।
कलिमल हरणि अगम जग पावनि॥
धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुरसरित सकल भयनासिनी॥
पान करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पूर्व जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन काहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥
शत योजनहू से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहिं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुण गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥
गंगाहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहुँ सज्जन पद पावत॥
बुद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखे नंगे कबहु न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥
महाँ अधिन अधमन कहँ तारें।
भए नर्क के बंद किवारें॥
जो नर जपै गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥
सब सुख भोग परम पद पावहिं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनी।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥
कंकरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥
दोहा
नित नव सुख सम्पति लहैं।
धरें गंगा का ध्यान।
अंत समय सुरपुर बसै।
सादर बैठी विमान॥
संवत भुज नभ दिशि ।
राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा कियो।
हरी भक्तन हित नैत्र॥
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