धर्म-अध्यात्म

Janmashtami की रात जरूर कर लें ये एक काम, चमक जाएगी किस्मत

Tara Tandi
26 Aug 2024 11:50 AM GMT
Janmashtami की रात जरूर कर लें ये एक काम, चमक जाएगी किस्मत
x
Janmashtami ज्योतिष न्यूज़: सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी को बहुत ही खास माना गया है जो कि भगवान कृष्ण की साधना आराधना को समर्पित दिन होता है इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना और व्रत का विधान होता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से प्रभु की कृपा बरसती है पंचांग के अनुसार इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व 26 अगस्त दिन सोमवार यानी आज देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी शुभ दिन पर भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल की जन्माष्टमी कई मायनों में बेहद खास होने जा रही है इस पावन दिन पर भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना अगर विधिवत तरीके से किया जाए तो पुण्य की प्राप्ति होती है इसी के साथ ही जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के चमत्कारी मंत्रों का जाप करना भी लाभकारी माना जाता है मान्यता है कि इन मंत्रों का जाप करने से किस्मत चमक जाती है और धन लाभ भी होता है।
भगवान कृष्ण के मंत्र—
अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्
स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्
ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय
कृं कृष्णाय नमः (108 बार जाप करें)
पंचामृत स्नान मंत्र
पंचामृतं मयाआनीतं पयोदधि घृतं मधु, शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्.
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि
श्री कृष्ण स्तुति
श्री कृष्ण चन्द्र कृपालु भजमन, नन्द नन्दन सुन्दरम्
अशरण शरण भव भय हरण, आनन्द घन राधा वरम्
सिर मोर मुकुट विचित्र मणिमय, मकर कुण्डल धारिणम्
मुख चन्द्र द्विति नख चन्द्र द्विति, पुष्पित निकुंजविहारिणम्
मुस्कान मुनि मन मोहिनी, चितवन चपल वपु नटवरम्
वन माल ललित कपोल मृदु, अधरन मधुर मुरली धरम्
वृषुभान नंदिनी वामदिशि, शोभित सुभग सिहासनम्
ललितादि सखी जिन सेवहि, करि चवर छत्र उपासनम्
श्री कृष्ण स्तोत्र
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम्
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम्
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम्
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम्
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम्
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम्
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम्
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम्
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम्
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम्
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम्
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम्
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम्
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम्
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम्
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम्
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम्
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः
Next Story