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धर्म-अध्यात्म
संतान प्राप्ति के लिए करें ये व्रत, जानिए व्रत तिथि, महत्व, शुभ मुहूर्त और कथा
Bhumika Sahu
14 Aug 2021 4:33 AM GMT
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हर महीने में दो एकादशी व्रत होते हैं. हर एकादशी विशेष मनोरथ को पूरा करने वाली मानी जाती है. यहां जानिए पुत्रदा एकादशी व्रत रखने से क्या होता है. क्या है व्रत विधि और कथा आदि इस दिन से जुड़ी पूरी जानकारी.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शास्त्रों में सभी एकादशी को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं. एक माह के शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. सभी एकादशियों पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. हर एकादशी मोक्षदायनी होने के साथ किसी विशेष मनोकामना को पूरा करने वाली होती है. श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है.
इस बार 18 अगस्त गुरुवार को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2021) का व्रत रखा जाएगा. नि:संतान लोगों और पुत्र की चाह रखने वालों के लिए ये व्रत अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है. इसे पवित्रा एकादशी (Pavitra Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि ये एकादशी व्रत व्यक्ति के अंतर्मन को पवित्र कर देता है और उसे व्यक्ति को जाने-अंजाने में हुए पापों से मुक्ति मिल जाती है. यहां जानिए पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा के बारे में.
शुभ समय
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 18 अगस्त 2021 को सुबह 03:20 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 19 अगस्त 2021 को सुबह 01:05 बजे
पारण समय – 19 अगस्त को सुबह 06:32 बजे से 08:29 बजे तक
पूजा विधि
दशमी की शाम में सूर्यास्त होने के बाद भोजन न करें और भगवान विष्णु का ध्यान करने के बाद सोएं. सुबह उठकर स्नान के समय पानी में गंगाजल डालकर नहाएं. इसके बाद साफ सुथरे कपड़े पहन कर पूजा करें. सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं और हाथ में पुष्प, अक्षत और दक्षिणा लेकर मुट्ठी बंद करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद इसे पुष्प प्रभु के चरणों में छोड़ दें.
अब एक कलश को लाल वस्त्र से बांधें फिर उसकी पूजा करके इस कलश के ऊपर भगवान की प्रतिमा रखें. प्रतिमा पर जल आदि अर्पित करने के बाद नया वस्त्र पहनाएं. फिर धूप दीप पुष्प आदि अर्पित कर नैवेद्य चढ़ाएं. उसके बाद एकादशी की कथा का पाठ करें. पूजन के बाद प्रसाद वितरित करें व ब्राह्मण को दान दक्षिणा दें. पूरे दिन निराहार रहें. अगर संभव न हो तो शाम के समय फलाहार कर सकते हैं. एकादशी की रात में जागरण करें और भगवान का भजन कीर्तन करते रहें. दूसरे दिन ब्राह्मण को भोजन खिलाकर और दक्षिणा देकर सम्मानपूर्वक विदा करने के बाद ही अपना व्रत खोलें.
व्रत कथा
प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगरी में महीजित नामक एक धर्मात्मा राजा सुखपूर्वक राज्य करता था. वो राजा काफी शांतिप्रिय, ज्ञानी और दानी था. उस राजा की कोई संतान नहीं थी, इस कारण वो अक्सर दुखी रहता था. एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ॠषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा. तब एक ऋषि ने बताया कि राजन ! पूर्व जन्म में सावन मास की एकादशी के दिन आपके तालाब से एक गाय जल पी रही थी. आपने उसे वहां से हटा दिया था. क्रोधित होकर उस गाय ने आपको संतानहीन होने का शाप दे दिया था. इस कारण ही आपके आज तक कोई संतान नहीं है.
यदि आप अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी को भगवान जनार्दन का भक्तिपूर्वक पूजन-अर्चन और व्रत करेंगे तो इस शाप का प्रभाव दूर हो जाएगा. ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने ऐसा ही किया. उसने अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से कुछ ही समय में रानी गर्भवती हो गईं और उन्होंने एक सुंदर तेजस्वी शिशु को जन्म दिया. पुत्र प्राप्ति से राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने हमेशा के लिए एकादशी का व्रत शुरू कर दिया. कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति निःसन्तान है, वो व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से पूरा करे तो अवश्य ही उसकी इच्छा पूरी होती है और उसे संतान की प्राप्ति होती है.
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