धर्म-अध्यात्म

मासिक दुर्गाष्टमी पर करें ये आसान उपाय

Tara Tandi
22 Jun 2023 1:47 PM GMT
मासिक दुर्गाष्टमी पर करें ये आसान उपाय
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हिंदू धर्म में देवी साधना के लिए वैसे तो कई सारे व्रत त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन मासिक दुर्गाष्टमी का अपना अलग महत्व होता हैं जो कि देवी मां की आराधना के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता हैं। इस दिन भक्त देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत हर माह पड़ता हैं ऐसे में अभी आषाढ़ का महीना चल रहा हैं और इस माह पड़ने वाली अष्टमी को आषाढ़ मासिक दुर्गाष्टमी के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि इस बार 26 जून को पड़ रही हैं इसी दिन गुप्त नवरात्रि की भी महाष्टमी मनाई जाएगी।
मान्यता है कि इस दिन देवी साधना भक्तों को दोगुना फल प्रदान करेगी। मासिक दुगाष्टमी के दिन भक्त देवी मां की विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर इस दिन कीलकम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो साधक का भाग्योदय होता हैं और सभी सुख समृद्धि प्राप्त होती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं माता का प्रिय कीलकम स्तोत्र पाठ, तो आइए जानते हैं।
कीलकम स्तोत्र-
॥ अथ कीलकम् ॥
ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहासरस्वती देवता,श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥1॥
सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः॥2॥
सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति॥3॥
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्॥4॥
समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्॥5॥
स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम्॥6॥
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥7॥
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥8॥
यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः॥9॥
न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥10॥
ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः॥11॥
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम्॥12॥
शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्॥13॥
ऐश्‍वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः॥14॥
॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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