धर्म-अध्यात्म

गुरुवार के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की जरूर करें ये आरती, ओम जय जगदीश हरे

Renuka Sahu
27 July 2023 3:42 AM GMT
गुरुवार के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की जरूर करें ये आरती, ओम जय जगदीश हरे
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हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा आराधना को समर्पित होता हैं वही गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता हैं इस दिन भक्त जगत के पालनहार को प्रसन्न करने के लिए दिनभर का व्रत करते हैं और पूजा पाठ करते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा आराधना को समर्पित होता हैं वही गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता हैं इस दिन भक्त जगत के पालनहार को प्रसन्न करने के लिए दिनभर का व्रत करते हैं और पूजा पाठ करते हैं।

माना जाता हैं कि समर्पित दिनों पर अगर देवी देवताओं की पूजा की जाए तो उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं, ऐसे में अगर आप भी आज के दिन भगवान विष्णु की आराधना व भक्ति कर रहे हैं तो उनकी प्रिय आरती का पाठ जरूर करें क्योंकि बिना आरती के पूजा संपन्न नहीं मानी जाती हैं और ना ही इसका पूर्ण फल मिलता हैं, ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री हरि की आरती।
भगवान विष्णु की आरती—
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ओम जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
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