धर्म-अध्यात्म

घर की सुख समृद्धि के लिए करे ये उपाय सुधरेंगे हालात

Tara Tandi
3 Dec 2023 10:29 AM GMT
घर की सुख समृद्धि के लिए करे ये उपाय सुधरेंगे हालात
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ज्योतिष न्यूज़: आज रविवार का दिन है जो भगवान सूर्यदेव की साधना के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है इस दिन भक्त सूर्य साधना में रहते हैं और पूजा पाठ के साथ व्रत उपवास भी रखते हैं कृपया प्राप्त करें।

लेकिन इसी के साथ अगर आप गरीबी से दूर जा रहे हैं या फिर समाज में मान सम्मान नहीं मिल रहा है तो लगातार 8 रविवार तक श्री सूर्यदेव की पूजा के साथ उनकी चालीसा का पाठ अवश्य करें, यह आसान से उपाय जरूर करें। करने से आपके हालात में सुधार आएगा धन लाभ के साथ ही मान सम्मान भी बढ़ेगा।
श्री सूर्य देव चालीसा-

॥ चौपाई ॥
जय शिव जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्तश्व तिमिरहर॥

भानु पतंग मेरीची भास्कर,
शिवानी हंस सुनूर विभाकर॥

विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥

अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कहिए॥ 4

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकि,
मुनिगन होत आकर्षक मोदल्हि॥

अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हनकत हय साता चढ़ाई रथ पर॥

मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥8

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सूर्य अर्क खग कलिकार॥

पूषा रवि आदित्य नाम ल,
हिरण्यगर्भाय नमः काहिकै॥

द्वादश नाम प्रेम सों गावें,
मस्तक बार बार नवाए॥

चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नासावै॥12

नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥

सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥

बारह नामाकरण करते हैं,
सहस जन्म के पातक तरते॥

उपाख्यान जो करते हैं तवजन,
रिपु सों जमलहते सोरहि छन॥16

धन सुत जुट परिवार बढ़ता है,
प्रबल मोह को फंद कट्टू है॥

आर्क शीशे को रक्षा करना,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥

सूर्य उत्सव पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥

भानुसांसा वकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥20

बाकी रहन पर्जनिक हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्रिये॥

कंठ सुवर्ण रेती की शोभा,
तिग्म् तेजसः कंधे लोभा॥

पूषां बहु मित्र पृष्णहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुशंकर॥

दोस्त के हाथ पर रक्षा करण,
भानुमान् उरसर्म सुउदर्चन॥24

बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥

जंगा गोपीपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलसा॥

विस्वासन पद की रखवारी,
बसते नित तम हारी॥

सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥28

अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जग समुद्रतट करहुँ तेहि नाहिं॥

दद्रु कुष्ठ तेहिं कहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥

अंधकार जग का जो हर्ता,
नव प्रकाश से आनंद भारत॥

ग्रह गन ग्रसि न लाभवत जाही,
कोटि बार मैं प्रणवौं ताहि॥32

मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
करत करत सुरमुनि नर सेवा॥

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हत्तसो भवके भ्रम सों॥

परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥36

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥

भानु उदय बैसाखी,
ज्येष्ठ इन्द्रवै आषाढ़ रवि गा॥

यम भादो आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥

अघन भिन्न विष्णु हैं पूषहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमाशिं॥40

॥ दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख उपाय लहि बिबिध, होनहिं सदा कृतकृत्य॥

नोट- खबरों की अपडेट के लिए जनता से रिश्ता पर बने रहे।

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