धर्म-अध्यात्म

शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए करें ये ज्योतिष उपाय

Tara Tandi
12 Feb 2022 4:50 AM GMT
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए करें ये ज्योतिष उपाय
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शनि देव (Shani Dev) को न्याय के देवता या धर्मराज कहा जाता है. शनि देव बिना किसी भेद-भाव, ऊंच-नीच के हर व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए कर्मों का फल देकर न्याय करते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शनि देव (Shani Dev) को न्याय के देवता या धर्मराज कहा जाता है. शनि देव बिना किसी भेद-भाव, ऊंच-नीच के हर व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए कर्मों का फल देकर न्याय करते हैं. पृथ्वी पर हर मनुष्य (Human) के जीवन में शनि की दशा ज़रूर आती है. शनि देव हर 30 साल में अलग-अलग राशियों से होते हुए वापस उसी राशि (Rashi) में आ जाते हैं. जहां से वे चले थे. जब किसी राशि में शनि की साढ़े साती शुरु होती है तो उस समय शनि पिछले 30 सालों में किए गए कर्मों का फल देते हैं. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि शनि देव सिर्फ दण्ड देते हैं. यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे हों तो शनि देव की कृपा से वह व्यक्ति जीवन की ऊंचाइयों को छूता है, लेकिन यदि व्यक्ति के कर्म खराब हों तो तब शनि की ढैय्या या साढ़े साती के दौरान उसे बहुत कठोर संघर्ष करना पड़ता है. कई बार तो शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याओं से भी गुजरना पड़ता है.

धर्म शास्त्रों और ज्योतिष शास्त्रों में कुछ उपाए बताए गए हैं, जिन्हें किया जाए तो शनि देव के प्रतिकूल प्रभाव और आने वाली परेशानियों को दूर किया जा सकता है. इसके लिए विद्वानों द्वारा जो उपाय बताए जाते हैं वे काफी खर्चीले होते हैं. जो सामान्य व्यक्ति के द्वारा नहीं किये जा सकते, परंतु ज्योतिष में कुछ ऐसे उपाय भी बताए गए हैं. जिनको करने में एक पैसा भी खर्च नहीं होता है. आइए जानते हैं वे उपाय.
प्रत्येक शनिवार को महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया दशरथ स्तोत्र का 11 बार पाठ करने से शनि देव की कृपा मिलती है.
मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर में तिल के तेल का दिया जलाने से शनि देव के कष्टों से मुक्ति मिलती है और हनुमान अपने भक्तों पर किसी प्रकार का कष्ट नहीं आने देते.
हर शनिवार को जल में चीनी और काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ों में अर्पित करें उसके बाद तीन परिक्रमा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं.
ज्योतिष में दिए गए शनि वैदिक मंत्र का जप करने से भी शनि देव की कृपा प्राप्त की जा सकती है.
"ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न:।'
'ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसंभुतं नमामि शनैश्चरम।'


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