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आषाढ़ी अमावस्या पर करें पितरों के तर्पण,मिलेगी सुख-संपत्ति और अपार धन
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की अमावस्या को अषाढ़ी अमावस्या या हलहारिणी अमावस्या कहा जाता है। इस बार आषाढ़ मास की अमावस्या तिथि 28 जून 2022 को है। चंद्र मास के अनुसार आषाढ़ वर्ष का चौथा माह होता है। इसके बाद वर्षा ऋतु की शुरुआत हो जाती है। हिंदू धर्म में आषाढ़ मास की अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन किसी पवित्र नदी, सरोवर में स्नान और पितरों के निमित्त दान व तर्पण करने का विधान रहता है। इसके अलावा इस दिन पितरों के लिए व्रत करने का भी विधान है। इससे आपके ऊपर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। अमावस्या तिथि पितृदोष और कालसर्प दोष को दूर करने के लिए काफी शुभ मानी जाती है। ऐसे में इस मास की अमावस्या पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बेहद खास है। इस दिन पितरों की शांति के लिए किया गया स्नान-दान और तर्पण उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ बहुत खुश होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पितरों के आशीर्वाद से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं क्या हैं आषाढ़ अमावस्या के व्रत नियम।
आषाढ़ अमावस्या की तिथि
आषाढ़ मास अमावस्या तिथि प्रारंभ: 28 जून, मंगलवार, प्रातः 5:53 से
आषाढ़ मास अमावस्या तिथि समाप्त: 29 जून, बुधवार, प्रातः 8:23
आषाढ़ अमावस्या की पूजा का महत्व
अमावस्या तिथि पर कई लोग अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं। इस दिन पितृ तर्पण, नदी स्नान और दान-पुण्य आदि करना ज्यादा फलदायी माना जाता है। इतना ही नहीं यह तिथि पितृ दोष से मुक्ति दिलाने में सहायक मानी गई है। अत: पितृ कर्म के लिए यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है।
आषाढ़ आमवस्या व्रत नियम
आषाढ़ आमवस्या को सूर्योदय से पूर्व स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित करें।
इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करें, इससे मानसिक शांत प्राप्त होगी।
आषाढ़ आमवस्या के दिन पेड़-पौधे को लगाने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है, इससे ग्रह दोष भी दूर हो जाता है।
अमावस्या तिथि को पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
आषाढ़ आमवस्या को शिव मंदिर में पूजा करें, इससे कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
आषाढ़ आमवस्या को दान देने से पितर प्रसन्न होते हैं, वंश को सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
आषाढ़ी अमावस्या पर करें पितरों के तर्पण
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।