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धर्म-अध्यात्म
पितृ पक्ष में क्षिप्रा तट पर करें ऑनलाइन तर्पण, ऐसे मिल जायेगा पूर्वजों को पिंडदान
Deepa Sahu
21 Sep 2021 2:27 PM GMT
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पितृ पक्ष शुरू हो चुका है.
उज्जैन. पितृ पक्ष शुरू हो चुका है. उज्जैन (Ujjain) में कोरोना काल में पितरों का तर्पण भी अब ऑनलाइन (Online Tarpan) हो रहा है. तर्पण के लिए प्रसिद्ध उज्जैन का क्षिप्रा तट कई पौराणिक कथाओं और आस्था को अपने इतिहास में समेटे हुए है. कहते हैं यहां के सिद्धवट घाट का महत्व बिहार के गयाजी के बराबर है. कथाएं और मान्यताएं और भी हैं. सबसे बड़ी बात ये कि जो लोग यहां अपने पुरखों का तर्पण करते हैं उनके कुल का डेढ़ सौ वर्षों का इतिहास यहां के पुजारी बिना कम्प्यूटर के पल भर में बता देते हैं. कोर्ट ने भी इसे मान्यता दे रखी है.
उज्जैन के रामघाट, सिद्धवट घाट में बड़ी संख्या लोग अपने पितरों का तर्पण करने पहुंचते हैं. मान्यता है कि क्षिप्रा नदी किनारे सिद्धवट घाट पर पूर्वजों का तर्पण करने से गया जी के बराबर पुण्य लाभ मिलता है. लोग सिर्फ अपना और शहर का नाम बताकर अपनी पीढ़ियों का पता पंडितों से लगाते हैं और अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. इस आधुनिक युग में भी बिना कम्प्यूटर के 150 वर्ष पुरानी पोथी पर काम कर रहे पंडित चुटकियों में जजमान के परिवार का लेखा जोखा सामने रख देते हैं. यही नहीं बल्कि कई बार इनकी पोथियों से कोर्ट में लंबित पारिवारिक और संपत्ति विवाद का भी निपटारा हुआ है.
कोरोना काल में ऑनलाइन तर्पण
कोरोना काल ने सदियों से चली आ रहे आस्था के इस सिलसिले को रोक दिया है. दो साल से लोग अब यहां नहीं आ पा रहे हैं. इसलिए सिद्धवट और रामघाट पर ऑनलाइन तर्पण की व्यवस्था की गयी है.
तर्पण का महत्व
उज्जैन में भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध का उतना ही महत्व है जितना महत्व गयाजी का है. इसके साथ रामघाट पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध स्थान माना जाता है. कहते हैं भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध उज्जैन में किया था. पूर्णिमा तिथि पर गया कोठा मंदिर में हजारों लोग अपने पूर्वजों को जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करते हैं. शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है.
मोक्ष दायिनी क्षिप्रा
धर्म शास्त्रों में अवंतिका नगरी के नाम से प्रख्यात जो आज का उज्जैन शहर है यहां श्राद्ध पक्ष के आरंभ होते ही देश के कोने कोने से लोगों का आना शुरू हो जाता था. लेकिन अब कोरोना के कारण इस संख्या में काफी कमी आयी है. क्षिप्रा नदी को मोक्ष दायिनी माना गया है. यहां तटों पर स्थित सिद्धवट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए तर्पण और पिंड दान करने आते हैं. शहर के अति प्राचीन सिद्धवट मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है.
प्राचीन वटवृक्ष की मान्यता
लोग प्राचीन वटवृक्ष का पूजन – अर्चन कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. मान्यता है कि वट वृक्ष देशभर में सिर्फ चार जगह पर स्थित है. इसमें से एक उज्जैन के सिद्धवट घाट पर है. कहते हैं इसे माता पार्वती ने लगाया था. इसका वर्णन स्कंन्द पुराण में भी है. सिद्धवट पर पितरों के तर्पण का यह कार्य 16 दिन तक चलता है.
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