धर्म-अध्यात्म

पूजा के दौरान जरूर करें खाटू श्याम जी की आरती, पूरी होंगी सभी मनोकामना

Subhi
8 July 2022 3:02 AM GMT
पूजा के दौरान जरूर करें खाटू श्याम जी की आरती, पूरी होंगी सभी मनोकामना
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कलियुग में श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में पूजित बाबा खाटू श्याम जी को सबसे बड़ा दाता कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने शीश का दान दिया था। धार्मिक मान्यता है कि खाटू श्याम जी का नाम बर्बरीक था

कलियुग में श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में पूजित बाबा खाटू श्याम जी को सबसे बड़ा दाता कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने शीश का दान दिया था। धार्मिक मान्यता है कि खाटू श्याम जी का नाम बर्बरीक था और वे बहुत ही वीर योद्धा थे। उनको दुर्गा माता से विजय होने का वरदान प्राप्त था। प्राणों की परवाह किए बिना अपना शीश धड़ अलग करने वाले बर्बरीक से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी ने उन्हें वरदान दिया था कि वह कलयुग में उनके श्याम नाम से प्रसिद्ध होंगे। कलयुग में जो भी इनका नाम लेगा उसके सभी संकट दूर हो जाएंगे। नीले घोड़े के सवार बाबा खाटू श्याम जी को हारे का सहारा, लखदातार, शीश का दानी, खाटू श्याम जी आदि नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि नियमित खाटू श्याम जी पूजा और आरती करने से जतका के सारे कष्ट मिट जाते हैं। यहां हम खाटू श्याम जी आरती लिरिक्स लेकर आए हैं, जिसके जरिए आप पूजा के दौरान इसे पढ़ सकते हैं...

खाटू श्याम जी की आरती

ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।

खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।

तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे।

खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।

सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे।

भक्त आरती गावे, जय – जयकार करे॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे।

सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम – श्याम उचरे॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत भक्त – जन, मनवांछित फल पावे॥

॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे।

निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे॥

ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।

खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥


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