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धर्म-अध्यात्म
21 अक्टूबर को करें गोवत्स द्वादशी व्रत, संतान की मनोकामना पूर्ण होगी
Bhumika Sahu
19 Oct 2022 10:48 AM GMT
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संतान की मनोकामना पूर्ण होगी
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी (Govats Dwadashi 2022) का द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 21 अक्टूबर, शुक्रवार को है। इस दिन गाय तथा बछड़ों की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। यदि गाय और बछड़ा न मिले, तो गीली मिट्टी से उनकी आकृति बनाकर पूजा करने का विधान है। आगे जानिए इस पर्व का महत्व व अन्य खास बातें…
इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे?
पंचांग के अनुसार 21 अक्टूबर, शुक्रवार को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी शाम 05.23 तक रहेगी, इसके बाद द्वादशी तिथि रात अंत तक रहेगी। इस दिन मघा नक्षत्र होने से काण नाम का अशुभ योग और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होने से सिद्धि नाम का शुभ योग दिन बनेगा। इसके अलावा शुक्ल और ब्रह्म नाम के 2 अन्य योग भी इस दिन बनेंगे।
इस विधि से करें व्रत (Govats Dwadashi Puja Vidhi)
- गोवत्स द्वादशी की सुबह सबसे पहले व्रती (व्रत करने वाला) को स्नान आदि करने के बाद व्रत- पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद दूध देने वाली गाय और उसके बछडे़ को माला पहनाकर पूजा करनी चाहिए।
- सबसे पहले गाय के मस्तक परचंदन का तिलक लगाएं। तांबे के बर्तन में पानी, चावल, तिल और फूल मिलाकर नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए गाए के पैरों पर डालें-
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
- इसके बाद गाय को अपनी इच्छा अनुसार पकवान खिलाएं और ये मंत्र बोलें-
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी॥
- इस तरह गाय और बछड़े की पूजा के बाद गोवत्स व्रत की कथा सुनें। पूरा दिन व्रत रखकर रात में अपने इष्टदेव और गौ माता की आरती करें। इसके बाद ही भोजन करें।
गोवत्स द्वादशी का महत्व (Govats Dwadashi Importance)
- हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पवित्र पशु माना गया है। कईं विशेष अवसरों पर गाय की पूजा भी की जाती है।
- मान्यता है कि गाय में देवताओं का वास होता है। गाय की सेवा और पूजा करने से कई तरह के फायदे भी हमें मिलते हैं।
- महाभारत के अनुसार, गाय के गोबर और मूत्र में देवी लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए पूजा आदि शुभ कार्यों में इनका उपयोग किया जाता है।
- एक कथा के अनुसार राजा उत्तानपाद और उनकी पत्नी सुनीति ने सबसे पहले ये व्रत किया था। इसके प्रभाव से ही उन्हें भक्त ध्रुव जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई।
- मान्यता है कि ये व्रत करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है और हर तरह सुख-समृद्धि जीवन में बनी रहती है।
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