- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- आज विनायक चतुर्थी पर...
धर्म-अध्यात्म
आज विनायक चतुर्थी पर पूजा करते समय करें मंत्रों का जाप और करें आरती...आपकी सभी मनोकामना होगी पूरी
Subhi
16 April 2021 5:28 AM GMT
x
आज विनायक चतुर्थी है और आज का दिन गणेश जी को समर्पित है। आज चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है।
आज विनायक चतुर्थी है और आज का दिन गणेश जी को समर्पित है। आज चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। आज के दिन गणेश जी की पूजा का विधान है। गणेश जी की विधि-विधान के साथ पूजा करने पर लोगों को उनके सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए इन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। इस दिन गणपति बप्पा का विशेष-पूजन किया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। गणेश जी की पूजा करते समय उनकी आरती और मंत्रों का उच्चारण करना भी बहुत आवश्यक होता है। मान्यता है कि गणेश जी की आरती गाने से उनके भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती हैं। आइए पढ़ते हैं गणेश जी की आरती और मंत्र।
श्री गणेश की आरती:
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
गणेश जी का स्तोत्र मंत्र:
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम्।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।
Next Story