धर्म-अध्यात्म

त्रेता युग का दियावांनाथ मंदिर, जिसके शिवलिंग की भगवान राम के भाई शत्रुघ्न ने की थी स्थापना

Subhi
4 Aug 2022 2:51 AM GMT
त्रेता युग का दियावांनाथ मंदिर, जिसके शिवलिंग की भगवान राम के भाई शत्रुघ्न ने की थी स्थापना
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भगवान शिव का प्रसिद्ध दियावांनाथ मंदिर सावन और शिवरात्रि में श्रद्धा और भक्ति का बड़ा केंद्र बन जाता है. मंदिर में इन दिनों हजारों की संख्या में तड़के से ही भक्तों का तांता लगा रहता है.

भगवान शिव का प्रसिद्ध दियावांनाथ मंदिर सावन और शिवरात्रि में श्रद्धा और भक्ति का बड़ा केंद्र बन जाता है. मंदिर में इन दिनों हजारों की संख्या में तड़के से ही भक्तों का तांता लगा रहता है. सावन के सोमवार को भक्तों की इतनी भीड़ बढ़ जाती है कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन को काफी मेहनत करनी पड़ती है. प्रयागराज (prayagraj) से गंगा और आसपास इलाके की पवित्र नदियों से जल लाकर कांवड़िए दियावांनाथ का अभिषेक करते हैं.

बसुही नदी के किनारे है मंदिर

दियावांनाथ की मान्यता ज्योतिर्लिंग के तरह की ही है. ये जागृत शिवलिंग त्रेता काल से ही उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के बरसठी इलाके में बसुही नदी के किनारे स्थापित है. पंगुलबाबा कुटी, करियांव, मीरगंज के महंत ब्रह्मचारी आत्मानंद जी का कहना है कि ये शिवलिंग भगवान श्रीराम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न द्वारा स्थापित है.

वाणासुर का था राज

उनका कहना है कि त्रेता युग में ये क्षेत्र घने वन से घिरा हुआ था और यहां वाणासुर नामक राक्षस का शासन चलता था. उस पर नियंत्रण पाने के लिए शत्रुघ्न सेना समेत यहां आए और वाणासुर से युद्ध किया. ये संग्राम कई महीनों तक चला. इस दौरान वाणासुर ने अपनी मायावी और आसुरी शक्ति से शत्रुघ्न को सेना सहित मूर्छित कर दिया. जब ये सूचना प्रभु श्रीराम को मिली तो वो गुरू वशिष्ठ के साथ यहां पधारे.

शत्रुघ्न ने की थी शिवलिंग की स्थापना

राम ने अपने तपोबल से शत्रुघ्न (Shatrughan) को सेना समेत मूर्छित से वापस सामान्य किया. शत्रुघ्न ने गुरू वशिष्ठ से वाणासुर को पराजित करने का उपाय पूछा. वशिष्ठ ने शत्रुघ्न को एक विशेष शिवलिंग की स्थापना का निर्देश दिया. गुरू की आज्ञा से शत्रुघ्न ने इस शिवलिंग की स्थापना की और इनका नाम दीनानाथ महादेव पड़ा. बाद में इनका नाम दियावांनाथ महादेव प्रचलित हो गया.

500 साल पहले मिला मंदिर

अवकाश प्राप्त शिक्षक सुरेंद्र सिंह का कहना है कि त्रेता युग का शिवलिंग मध्यकाल तक आते-आते घने झुरमुट में छिप गया. करीब 5 सौ साल पहले क्षेत्र के सूबेदार दुबे की गाय शिवलिंग पर अपना दूध स्वयं चढ़ा देती थी. ये रहस्य किसी को मालूम नहीं था. एक बार सूबेदार दुबे ने अपनी गाय को शिवलिंग पर दूध अर्पित करते देख लिया. इसके बाद शिवलिंग के महात्म्य के बारे में क्षेत्र में चर्चा तेज हुई और लोगों ने शिवलिंग की खुदाई शुरू कर दी, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली. कुछ दिन के बाद एक भक्त को इस स्थान पर मंदिर स्थापित करने का स्वप्न आया, जिसके बाद भगौती प्रसाद मिश्र पंडा के नेतृत्व में दियावांनाथ मंदिर की स्थापना हुई.

विदेश से भी आते हैं भक्त

इस मंदिर की इतनी मान्यता है कि देश के अलावा विदेश से भी भक्त यहां अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते रहते हैं. स्थानीय लोगों की मांग है कि काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह सरकार इसको विस्तार देने के लिए सहयोग करना चाहिए.


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