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धर्म-अध्यात्म
Dhanteras 2021: कौन हैं कुबेर देव? जानिए धनतेरस पर क्यों जरूरी है इनकी पूजा
Rani Sahu
1 Nov 2021 8:50 AM GMT
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कार्तिक मास कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है
कार्तिक मास कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. यह दिन धन त्रयोदशी के नाम से भी लोकप्रिय है, जो धन के देवता कुबेर को समर्पित होता है. कुछ ग्रंथों में कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष भी बताया गया है. धनतेरस के दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए सोना एवं चांदी जैसे कीमती धातु खरीदने का प्रचलन है. कहते हैं कि इस दिन खरीदे गये कीमती धातु अक्षय होते हैं. इस दिन कुबेर देव की पंचोपचार विधि से पूजा करने से पूरे साल आर्थिक संकट एवं रोगों से मुक्ति मिलती है, तथा घर में सुख, शांति एवं समृद्धि का वास होता है, जानें कौन हैं कुबेर देव एवं क्या है इनकी पूजा विधि, मंत्र एवं आरती. यह भी पढ़े: Diwali 2021: देवी लक्ष्मी के इन प्रतीकों का रखें ध्यान, ना करें अपमान! हो सकता है धन का भारी नुकसान!
भगवान कुबेर का परिवार एवं उनका स्वरूप
पुराणों के अनुसार कुबेर विश्रवा एवं इलविदा के पुत्र हैं. विश्रवा ने राक्षस कुमारी कैकेसी से भी विवाह किया था, जिसकी चार संतानें रावण, कुंभकर्ण, विभीषण एवं सूपर्नखा हैं. इस तरह कुबेर रावण के सौतेले भाई हैं. इनका विवाह कौबेरी से हुआ था, उनकी चार संतानों में तीन पुत्र नलकुबारा, मणिग्रीव, मयूरजा एवं पुत्री मीनाक्षी थीं. संस्कृत में कुबेर का अर्थ विकृति होता है. इस शब्द के अनुरूप ही भगवान कुबेर एक मोटे बौने शरीर वाले हैं. उनकी शारीरिक संरचना उनके विकृति स्वरूप को दर्शाती हैं, जिनके तीन पैर, केवल आठ दांत एवं बाईं आंख पीली मानी जाती है. धन के देवता होने के कारण वे आभूषणों से लदे-फदे होते हैं और उनके साथ हमेशा धन का एक थैला होता है. मान्यता है कि पुष्पक विमान उन्हें ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था, जिसे रावण ने उनसे छीन लिया था.
भगवान कुबेर के संदर्भ में रोचक कथा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुबेर देव का निवास उत्तर दिशा की ओर होता है, इसलिए इनकी मूर्ति उत्तर दिशा में स्थापित करनी चाहिए. ऐसा करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती. धर्म ग्रंथों के अनुसार रामायण काल में कुबेर देव ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर्वत पर कठोर तप किया. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव एवं माता पार्वती ने दर्शन दिया. देवी पार्वती की तरफ बाईं आंख से देखने के कारण देवी पार्वती के दिव्य तेज से उनकी बाईं आँख भस्म होकर पीली पड़ गयी. लेकिन भगवान शिव इनकी तपस्या से प्रसन्न थे, उन्होंने कुबेर से कहा कि मैं तुम्हें पूरी दुनिया के धन का अधिपति बनाता हूं, आज से तुम कुबेर कहलाओगे. तुम्हारा एक नेत्र भले ही पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, लेकिन तुम एकाक्षीपिंगल कहलाओगे.
कुबेर देव की पूजा विधि
धन त्रयोदशी के दिन प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात शुभ मुहूर्त के अनुरूप घर के मंदिर के सामने एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर मां लक्ष्मी एवं कुबेर देव की प्रतिमा स्थापित करें. उत्तर दिशा में मुंह करके पूजा प्रारंभ करते हुए सर्वप्रथम प्रतिमा पर गंगाजल छिड़कें. प्रतिमा के समक्ष आभूषण एवं अपना धन कोष रखकर उस पर स्वास्तिक बनायें. अब माता लक्ष्मी एवं कुबेर देव का ध्यान करते हुए कुबेर मंत्र का उच्चारण करें. माँ लक्ष्मी एवं कुबेर देव को लाल पुष्प, तुलसी, अक्षत, रोली एवं भोग में दूध से बनी मिठाई अर्पित करें.
कुबेर के मंत्र –
* ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
* ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
कुबेर जी की आरती
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे,स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,भण्डार कुबेर भरे॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,कई-कई युद्ध लड़े॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे,सिर पर छत्र फिरे, स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं, सब जय जय कार करैं॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
गदा त्रिशूल हाथ में, शस्त्र बहुत धरे, स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन,धनुष टंकार करें॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,साथ में उड़द चने॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
बल बुद्धि विद्या दाता,हम तेरी शरण पड़े, स्वामी हम तेरी शरण पड़े
अपने भक्त जनों के,सारे काम संवारे॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
मुकुट मणी की शोभा,मोतियन हार गले, स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,घी की जोत जले॥
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