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- 10 जुलाई को रखा जाएगा...
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आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी जब आती है तो जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. इस बार देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को है. इसके बाद आने वाले चार महीनों तक भगवान विष्णु पाताल लोक में वास करते हैं. इन चार महीनों में सभी तरह के शुभ संस्कारों पर रोक लग जाती है, क्योंकि ये समय भगवान विष्णु की योग निद्रा का होता है. आइए आज आपको देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं.
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी ये कथा
देवशयनी एकादशी व्रत कथा का वर्णन खुद भगवान श्रीकृष्ण ने किया है. भगवान श्रीकृष्ण ने इस वृतांत को धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था. सूर्यवंश में राजा मांधाता हुए थे जो बहुत सत्यवादी, महान और प्रतापी थे. वे अपनी प्रजा का पुत्र के समान ख्याल रखते थे.
एक बार राजा के राज्य में अकाल पड़ गया. अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई. प्रजा का दुख दूर करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए. वहां घूमते हुए एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई.
तब ऋषि ने राजा को देवशयनी एकादशी का महत्व बताते हुए विधिवत व्रत करने को कहा जिसके शुभ प्रभाव से राज्य में वर्षा और प्रजा को सुख प्राप्त हुआ. देवशयनी एकादशी व्रत को करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते हैं, इसलिए मोक्ष की इच्छा करने वाले जातकों को इस एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए.
देवशयनी एकादशी की तिथि
एकादशी तिथि 09 जुलाई शाम 04 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और 10 जुलाई दोपहर 02 बजकर 13 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि 10 जुलाई की है, इसलिए एकादशी 10 जुलाई को मनाई जाएगी. एकादशी व्रत का पारण 11 जुलाई सुबह 05 बजकर 55 मिनट से लेकर 08 बजकर 36 मिनट तक कर सकेंगे.
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