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धर्म-अध्यात्म
भगवान विष्णु की साधना के लिए शुभ माना जाने वाला देवशयनी एकादशी से लग जायेगा चातुर्मास, जानें इसके पीछे की कथा और नियम
Bhumika Sahu
18 July 2021 5:51 AM GMT
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प्राचीन काल में ऋषियों-मुनियों ने मानव मात्र के कल्याण के लिए ऋतुओं के अनुरूप पर्व एवं परंपराओं को सुनिश्चित किया था. चार महीने का चातुर्मास एक ऐसा ही विशेष अवसर है जो कि इस साल 20 जुलाई से शुरु होगा. इसका महत्व एवं नियम जानने के लिए पढ़ें ये लेख —
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। माता लक्ष्मी संग भगवान विष्णु की साधना के लिए शुभ माना जाने वाला चातुर्मास देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) यानि 20 जुलाई 2021 से देवोत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) 14 नवंबर 2021 तक रहेगा. मान्यता है कि इस चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं. इस दौरान भगवान विष्णु के साधक संयम और नियम के साथ जप, तप, दान आदि करते हुए भगवान विष्णु की कृपा पाने का उपाय करते हैं. हिंदू धर्म के साथ जैन और बौद्ध धर्मो में भी चातुर्मास का विशेष महत्व होता है. आइए जानते हैं चातुर्मास से जुड़ी कथा, महत्व और उसके नियम के बारे में –
चातुर्मास से जुड़ी कथा
मान्यता है कि एक बार दैत्यों के राजा विरोचन के पुत्र बलि ने अश्वमेघ यज्ञ कर बहुत सारा पुण्य अर्जित् कर लिया था. इसके चलते सारे राक्षसगण देवताओं से उच्च श्रेणी में पहुंच गये और उन्होंने देवताओं के राजा इंद्र से उनका सिंहासन छीन लिया. इसके बाद सभी देवतागण मदद मांगने के लिए भगवान विष्णु की शरण में गये. तब भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए वामन अवतार लिया और बलि के सिर पर पैर रख कर तीन पग में धरती, आकाश और पाताल नाप कर बलि को आश्रयहीन कर दिया. लेकिन बलि को बदले में उन्होंने पाताल लोक का राज्य दे दिया और एक वर मांगने को कहा. तब बलि ने उनसे आग्रह किया कि साल में एक बार वे माता लक्ष्मी के साथ उनके लोक में निवास करें. भगवान विष्णु ने तथास्तु कह कर उनकी मनोकामना को पूरा किया. तभी से भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ चार महीने पाताल लोक में योगनिद्रा में लीन रहते हैं.
चातुर्मास का महत्व
ईश्वर की साधन के लिए चातुर्मास यानि चार माह की इस अवधि को विशेष रूप से आध्यात्मिक माना गया है. इन चार महीने में भगवान श्री विष्णु की पूजा का विधान है. मान्यता है कि भगवान विष्णु सर्वव्यापी है और वही पूरी सृष्टि के पालनहार हैं. इसलिए इस पावन मास में माता लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की शेषनाग पर लेटे हुए मूर्ति की पूजा का विधान है. इन चार महीने में विधि-विधान से सभी नियमों का पालन करते हुए जो कोई भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करता है, वह श्री हरि कृपा से सुख-संपत्ति आदि का भोग करते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है.
चातुर्मास के नियम
आयुर्वेद के अनुसार चौमासे में सादा, ताजा और सुपाच्य भोजन करना चाहिए.
चातुर्मास में मांसाहर, पत्तेदार सब्जी और दही के सेवन से बचना चाहिए.
चातुर्मास में पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
चातुर्मास में दिन में नहीं सोना चाहिए.
तन-मन एवं आरोग्य के लिए सभी नियमों का पालन करते हुए ध्यान, जप एवं स्वाद त्याग करना चाहिए.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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