धर्म-अध्यात्म

Dev Deepawali जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

Tara Tandi
14 Nov 2024 1:31 PM GMT
Dev Deepawali जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
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Dev Deepawali ज्योतिष न्यूज़: सनातन धर्म में कई सारे त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन देव दीपावली को बहुत ही खास माना गया है जो कि दिवाली के बाद मनाई जाती है। इस दिन देवी देवता धरती पर आकर दिवाली मनाते हैं यही कारण है कि इसे देव दीपावली के नाम से जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा पर देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है जो कि दिवाली के 15 दिनों के बाद पड़ती है। इस दिन पूजा पाठ और मंत्रों का जाप करने से जीवन की सारी दुख परेशानियां दूर हो जाती है और ईश्वर की असीम कृपा प्राप्त होती है। इस साल देव दीपावली का त्योहार 15 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा पाठ के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ें ऐसा करने से पुण्य फलों में वृद्धि होती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं देव दीपावाली से जुड़ी रोचक कथा।
यहां पढ़ें देव दीपावाली की व्रत कथा—
शिवपुराण के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था, उसके तीन बेटे थे, जिनका नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली था। देवताओं द्वारा तारकासुर का वध होने से उसके पुत्र बदला लेना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया और अमरता का वरदान मांगा। लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान न देते हुए दूसरा वरदान मांगने को कहा।
ये वरदान मांगा ब्रह्माजी से
तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली ने ब्रह्माजी से कहा कि ‘हमारे लिए तीन नगर बनवाइए, जो आकाश मार्ग से लगातार घूमते रहें। एक हजार साल बाद ये तीनों नगर एक ही जगह पर आकर मिलें। उस समय जो देवता उन नगरों को एक ही बाण से नष्ट कर सके, उसी के हमारी मृत्यु संभव हो सके। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
मयदानव ने किया त्रिपुरों का निर्माण
ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने तीन नगरों का निर्माण किया। तीनों भाइयों ने एक-एक नगर पर अधिकार कर लिया और इंद्र आदि देवताओं को सताने लगे। इनसे घबराकर सभी देवता भगवान शंकर के पास गए और सहायता मांगी। तब महादेव ने देवताओं की दुर्दशा देखी तो वे स्वयं स्वयं त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए।
सभी देवताओं ने दिया महादेव का साथ
जब भगवान शिव युद्ध के लिए निकले तो विश्वकर्मा ने एक दिव्य रथ उन्हें दिया। हिमालय महादेव का धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे।
इसलिए मनाते हैं देव दिवाली
त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी हुआ। त्रिपुर नाश के बाद सभी देवता महादेव के साथ काशी आए और यहां आकर उत्सव मनाया। उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से उस तिथि पर काशी में देव दिवाली का पर्व मनाया जा रहा है।
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