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धर्म-अध्यात्म
आखिर क्यों देवर्षि नारद ने अपने पिता ब्रह्मा जी को दिया था बड़ा श्राप, जानें
Rani Sahu
10 Aug 2021 9:07 AM GMT
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शास्त्रों में नारद को भगवान का ‘मन’ कहा गया है, यही कारण है कि ईश्वर के मन में जो कुछ भी होता है
शास्त्रों में नारद को भगवान का 'मन' कहा गया है, यही कारण है कि ईश्वर के मन में जो कुछ भी होता है, वह नारद जी को सब कुछ ज्ञात रहता है. नारद मुनि हर समय अपने अराध्य श्री नारायण का गुणगान करने में मगन रहते हैं. नारद मुनि को पुराणों में हर स्थान पर राजर्षि और महर्षि से भी ऊपर देवर्षि का सम्बोधन देकर सम्मानित किया गया है. कई जगह उन्हें ब्रह्मर्षि कहकर भी पूजा गया है. पौराणिक कथाओं को पढ़ने–सुनने पर ज्ञात होता है कि उनकी पहुंच ब्रह्मलोक से देवलोक और दानवों के राजमहलों से मृत्युलोक तक है.
पिता से मिला था ये बड़ा श्राप
ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न होने के कारण देवर्षि नारद को मानस पुत्र माना गया है. एक बार ब्रह्मा जी ने उन्हें सृष्टि के विस्तार की आज्ञा दी तो नारद जी ने उन्हें विषय भोग को भक्ति में सबसे बड़ी बाधा बताते हुए कहा कि भगवान पुरुषोत्तम ही सबसे आदिकारण और विस्तार के बीज हैं. वे ही अपने भक्तों को शरण देने वाले हैं. ऐसे में भक्तों के आराध्य और प्राप्य उन परमेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर कोई मूर्ख ही होगा जो विनाशकारी विषय में मन लगायेगा. भला अमृत के समान अधिक प्रिय भगवान श्रीकृष्ण की सेवा छोड़कर कौन मूढ़ विषय रूपी विष को चखेगा. देवर्षि नारद के द्वारा ऐसा जवाब सुनकर ब्रह्मा जी को बहुत क्रोध आया. उन्होंने जब अपने ही पुत्र को सृष्टि के कार्य से इस तरह विरत होते देखा तो उन्होंने गुस्से में आकर उन्हें श्राप दे दिया, 'नारद! तुमने मेरी अवज्ञा की है, इसलिए मेरे श्राप से तुम्हारा सारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गंधव योनि को प्राप्त कर श्रृंगार–विलासरत कामिनियों से वशीभूत हो जाओगे.
तब पिता को भी दिया श्राप
ब्रह्मा जी से श्राप मिलने के बाद दु:खी होकर नारद जी ने अपने पिता से कहा कि पिता को चाहिए कि वह अपने कुमार्गी पुत्र को श्राप दे या फिर उसका त्याग कर दे, लेकिन आपने पंडित होकर भी अपने तपस्वी पुत्र को श्राप देना उचित समझा. अब आप मुझ पर इतनी कृपा कर दीजिए कि मेरा जन्म जिस–जिस योनि में हो, उसमें मेरे साथ भगवान की भक्ति हमेशा बनी रहे. देवर्षि नारद ने ब्रह्मा जी से कहा कि आपने मुझ निरपराध के अकारण श्राप दिया है इसलिए मैं भी आपको श्राप देता हूं कि आपकी तीन कल्पों तक लोक में पूजा नहीं होगी और आपके साथ ही आपके मंत्र, स्तोत्र, कवचन आदि का लोप हो जाएगा.
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