धर्म-अध्यात्म

Dattatreya Jayanti 2020: भगवान दत्तात्रेय की कलियुग में जानें क्या है रहस्य

Kunti Dhruw
30 Dec 2020 2:30 PM GMT
Dattatreya Jayanti 2020: भगवान दत्तात्रेय की कलियुग में जानें क्या है रहस्य
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कौन हैं भगवान दत्‍तात्रेय और कैसे हुई इनकी उत्‍पत्ति

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: कौन हैं भगवान दत्‍तात्रेय और कैसे हुई इनकी उत्‍पत्ति- हिंदू धर्म में भगवान दत्‍तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्‍णु और शिव तीनों का एक रूप माना गया है। आज भगवान दत्‍तात्रेय की जयंती है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार भगवान दत्‍तात्रेय विष्‍णुजी के छठें अवतार माने जाते हैं। भगवान दत्‍तात्रेय में तीनों रूप समाहित होने के कारण उन्‍हें कलयुग का देवता माना जाता है। गाय और कुत्‍ते दोनों उनकी सवारी हैं। मान्‍यता है कि भगवान दत्‍तात्रेय की पूजा करने से तीनों त्रिदेव की पूजा करने का फल प्राप्‍त होता है। भगवान त्रिदेव का स्‍वरूप माने जाने वाले दत्‍तात्रेय आजन्‍म ब्रह्मचारी और संन्‍यासी कहलाए। आइए जानते हैं कौन हैं भगवान दत्‍तात्रेय और कैसे हुई इनकी उत्‍पत्ति…

दत्‍तात्रेय के जन्‍म से जुड़ी पौराणिक कथा
दत्‍तात्रेय भगवान को त्रिदेव का स्‍वरूप क्‍यों माना जाता है, इसके पीछे एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है। एक बार माता पार्वती, लक्ष्‍मी और सरस्‍वती को अपने सतीत्‍व पर बहुत घमंड हो गया था। भगवान ने इनका घमंड दूर करने के लिए एक लीला रची। इसी लीला के तहत नारदजी एक दिन बारी-बारी से तीनों के पास पहुंचे और तीनों कहा कि ऋषि अत्रि की पत्‍नी अनुसुइया के सामने आपका सतीत्‍व कुछ भी नहीं है। फिर तीनों देवियों ने य‍ह बात अपने पति को बताई और कहा आप तीनों जाकर अनुसुइया के सतीत्‍व की परीक्षा लें।
त्रिदेव पहुंचे सती अनुसुइया के आश्रम में
अपनी-अपनी पत्‍नी की बात मानकर भगवान शिव, विष्‍णु और ब्रह्माजी साधु का वेश धरकर सती अनुसुइया के आश्रम में भिक्षा मांगने पहुंच गए। उस वक्‍त ऋषि अत्रि अपने आश्रम में नहीं थे। तीनों ने सती अनुसुइया से भिक्षा मांगी और शर्त रखी कि वह निर्वस्‍त्र होकर उन्हें भिक्षा दें। यह बात सुनकर सती अनुसुइया चौंक गई, लेकिन साधुओं का अपमान न हो जाए, इस डर से उन्‍होंने पति का स्‍मरण करके अपने सती धर्म की शपथ ली। उन्‍होंने कहा कि यदि मेरा सती धर्म सत्‍य है तो ये तीनों 6 महीने के शिशु बन जाएं। अनुसुइया ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। तीनों देवता 6 महीने के शिशु बन गए और सती अनुसुइया ने माता बनकर तीनों को दुग्धपान करवाया।
पार्वती, सरस्‍वती और लक्ष्‍मी को हो गई चिंता
जब पति वापस नहीं लौटे तो तीनों देवियों को चिंता होने लगी। तब नारदजी ने आकर पूरी बात बताई। फिर तीनों देवियों ने सती अनुसुइया के पास जाकर क्षमा मांगी और अपने-अपने पति को वापस मांगा। अनुसुइया ने तीनों देवताओं को वापस उनके रूप में बदल दिया। अनुसुइया के सती धर्म से प्रसन्‍न होकर त्रिदेवों ने उन्‍हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश के रूप में तुम्‍हारी कोख से जन्‍म लेंगे। फिर ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्‍णु के अंश से दत्‍तात्रेय और फिर शिव के अंश से ऋषि दुर्वासा की उत्‍पत्ति हुई। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, भगवान दत्‍तात्रेय को तीनों देवताओं का रूप माना जाता है।
ऐसा है स्‍वरूप
पुराणों के अनुसार, इनका स्‍वरूप 3 मुख वाला, 6 हाथ वाला और त्रिदेवमय माना जाता है। तस्‍वीर में इनके पीछे एक गाय और आगे 4 कुत्‍ते दिखाई देते हैं। पुराणों में ऐसी मान्‍यता है कि दत्‍तात्रेय भगवान गंगा स्‍नान के लिए आए थे, इसलिए गंगा के तट पर दत्‍त पादुका की पूजा की जाती है। दत्‍तात्रेय भगवान की जयंती का उत्‍सव महाराष्‍ट्र में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इनकी पूजा यहां गुरु के रूप में की जाती है। माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को हुआ था जन्‍म
दत्‍तात्रेय जयंती हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। ऐसी मान्‍यता है कि इसी दिन सती अनुसुइया की कोख से भगवान दत्‍तात्रेय का जन्‍म हुआ था। उनका जन्‍म प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए दोपहर बाद ही उनके जन्‍म का उत्‍सव मनाया जाता है। उनकी सबसे ज्‍यादा पूजा कर्नाटक, महाराष्‍ट्र, आंध्र प्रदेख और गुजरात में होती है।
ऐसी की जाती है पूजा
दत्‍तात्रेय जयंती पर कुछ लोग उपवास करते हैं। इस दिन विधिविधान से दत्‍तात्रेय की पूजा की जाती है और भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दिन भगवान के प्रवचन वाली अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता जैसी पवित्र पुस्तकें पढ़ी जाती हैं। इस अवसर पर महाराष्ट्र में कई स्थानों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है।


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