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धर्म-अध्यात्म
रोजाना संध्याकाल पूजन , श्री गायत्री अष्टोत्तर स्तोत्र का पाठ कीजिये
Tara Tandi
8 May 2023 11:40 AM GMT
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सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा को सर्वोत्तम माना गया है। ऐसे में हर कोई ईश्वर कृपा पाना चाहता है इसके लिए लोग कई तरह के उपाय व पूजा पाठ भी करते हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर रोजाना संध्याकाल पूजन में श्री गायत्री अष्टोत्तर स्तोत्र का पाठ किया जाए।
तो देवी मां गायत्री का आशीर्वाद मिलता है साथ ही साथ व्यक्ति की किस्मत बदलते देरी नहीं लगती है। साधक के जीवन में सदा ही सुख शांति और समृद्धि बनी रहती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री गायत्री अष्टोत्तर स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, तो आइए जानते है।
श्री गायत्री अष्टोत्तर स्तोत्र
तरुणादित्यसङ्काशा सहस्रनयनोज्ज्वला ।
विचित्रमाल्याभरणा तुहिनाचलवासिनी ॥ १ ॥
वरदाभयहस्ताब्जा रेवातीरनिवासिनी ।
प्रणित्यय विशेषज्ञा यन्त्राकृतविराजिता ॥ २ ॥
भद्रपादप्रिया चैव गोविन्दपदगामिनी ।
देवर्षिगणसन्तुष्टा वनमालाविभूषिता ॥ ३ ॥
स्यन्दनोत्तमसंस्था च धीरजीमूतनिस्वना ।
मत्तमातङ्गगमना हिरण्यकमलासना ॥ ४ ॥
धीजनाधारनिरता योगिनी योगधारिणी ।
नटनाट्यैकनिरता प्रणवाद्यक्षरात्मिका ॥ ५ ॥
चोरचारक्रियासक्ता दारिद्र्यच्छेदकारिणी ।
यादवेन्द्रकुलोद्भूता तुरीयपथगामिनी ॥ ६ ॥
गायत्री गोमती गङ्गा गौतमी गरुडासना ।
गेयगानप्रिया गौरी गोविन्दपदपूजिता ॥ ७ ॥
गन्धर्वनगराकारा गौरवर्णा गणेश्वरी ।
गुणाश्रया गुणवती गह्वरी गणपूजिता ॥ ८ ॥
गुणत्रयसमायुक्ता गुणत्रयविवर्जिता ।
गुहावासा गुणाधारा गुह्या गन्धर्वरूपिणी ॥ ९ ॥
गार्ग्यप्रिया गुरुपदा गुह्यलिङ्गाङ्गधारिणी ।
सावित्री सूर्यतनया सुषुम्नानाडिभेदिनी ॥ १० ॥
सुप्रकाशा सुखासीना सुमतिः सुरपूजिता ।
सुषुप्त्यवस्था सुदती सुन्दरी सागराम्बरा ॥ ११ ॥
सुधांशुबिम्बवदना सुस्तनी सुविलोचना ।
सीता सर्वाश्रया सन्ध्या सुफला सुखधायिनी ॥ १२ ॥
सुभ्रोः सुवासा सुश्रोणी संसारार्णवतारिणी ।
सामगानप्रिया साध्वी सर्वाभरणभूषिता ॥ १३ ॥
वैष्णवी विमलाकारा महेन्द्री मन्त्ररूपिणी ।
महालक्ष्मी महासिद्धी महामाया महेश्वरी ॥ १४ ॥
मोहिनी मदनाकारा मधुसूदनचोदिता ।
मीनाक्षी मधुरावासा नागेन्द्रतनया उमा ॥ १५ ॥
त्रिविक्रमपदाक्रान्ता त्रिस्वरा त्रिविलोचना ।
सूर्यमण्डलमध्यस्था चन्द्रमण्डलसंस्थिता ॥ १६ ॥
वह्निमण्डलमध्यस्था वायुमण्डलसंस्थिता ।
व्योममण्डलमध्यस्था चक्रिणी चक्ररूपिणी ॥ १७ ॥
कालचक्रवितानस्था चन्द्रमण्डलदर्पणा ।
ज्योत्स्नातपानुलिप्ताङ्गी महामारुतवीजिता ॥ १८ ॥
सर्वमन्त्राश्रया धेनुः पापघ्नी परमेश्वरी ।
नमस्तेस्तु महालक्ष्मी महासम्पत्तिदायिनी ॥ १९ ॥
नमस्तेस्तु करुणामूर्ती नमस्ते भक्तवत्सले ।
गायत्र्यां प्रजपेद्यस्तु नाम्नां अष्टोत्तरं शतम् ॥ २० ॥
फलश्रुतिः ॥
तस्य पुण्य फलं वक्तुं ब्रह्मणाऽपि नशक्यते ।
प्रातः काले च मध्याह्ने सायं वा द्विजोत्तम ॥ २१ ॥
ये पठन्तीह लोकेस्मिन् सर्वान्कामानवाप्नुयात् ।
पठनादेव गायत्री नाम्नां अष्टोत्तरं शतम् ॥ २२ ॥
ब्रह्म हत्यादि पापेभ्यो मुच्यते नाऽत्र संशयः ।
दिने दिने पठेद्यस्तु गायत्री स्तवमुत्तमम् ॥ २३ ॥
स नरो मोक्षमाप्नोति पुनरावृत्ति विवर्जितम् ।
पुत्रप्रदमपुत्राणाम् दरिद्राणां धनप्रदम् ॥ २४ ॥
रोगीणां रोगशमनं सर्वैश्वर्यप्रदायकम् ।
बहुनात्र किमुक्तेन स्तोत्रं शीघ्रफलप्रदम् ॥ २५ ॥
इति श्री गायत्री अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ||
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